March 15, 2025

चुनाव अभी दूर लेकिन सियासी तपिस महसूस होने लगी है पहाड़ी राज्‍य उत्‍तराखण्‍ड में

देहरादून। उत्तराखंड को करीब छह माह बाद विधानसभा चुनाव में जाना है, लेकिन मैदान अभी से सजने लगा है, माहौल गर्माने लगा है। चुनाव पूर्व की सरगर्मियां इस बार समय से पहले शुरू हो रही हैं और सियासी तपिश भी दूर से महसूस की जा रही है। यकीनन इसके कुछ कारण हैं और कारक भी। अलग भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान के बावजूद राजनीति की राष्ट्रीय धारा में चलने वाले उत्तराखंड में राष्ट्रीय दलों की रुचि स्वाभाविक रूप से रहती है। भाजपा और कांग्रेस के लिए इस बार भी उत्तराखंड अहम बना हुआ है और अपना दल भी पहली बार संजीदगी दिखा रहा है। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जैसे बड़े जिलों में बसपा ने भी अपनी खोई ताकत हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी है।
हर बार की तरह होने वाला चुनाव कई कारणों से इस बार खास है। गत चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी। मोदी का जादू इस तरह चला कि कांग्रेस विधानसभा में 11 सीटों तक सिमट गई। 70 में से 57 सीटों पर पर भाजपा के विधायक चुने गए। इसी हिमालयी सफलता ने भाजपा के लिए चुनौती भी खड़ी की और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल को चुनाव में काम आने वाले कुछ सवालों की सौगात भी दी।
भाजपा के सामने पिछले चुनावी कीर्तिमान को दोहराने की चुनौती आ खड़ी हुई है। डबल इंजन वाली सरकार से किए जा रहे सवालों के जवाब खोजना भी प्रदेश भाजपा के लिए कोई आसान नहीं है। केंद्र की आलवेदर रोड, केदारनाथ पुननिर्माण, कर्णप्रयाग रेल जैसी परियोजनाओं पर हो रहे काम और अन्य उपलब्धियां प्रदेश सरकार की झोली में हैं, लेकिन सवाल तो दूसरे इंजन (प्रदेश सरकार) की उपलब्धियों को लेकर भी होने वाले हैं। भारी बहुमत के बावजूद तीन-तीन मुख्यमंत्री जैसे सवाल का चुनावी मैदान में उठना जितना स्वाभाविक है, इसका उत्तर उतना ही मुश्किल।
भाजपा संगठन और प्रदेश सरकार, दोनों इस तरह के सवालों के सटीक उत्तर खोजने में पूरी ताकत के साथ जुटे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक दोनों अपनी-अपनी इन कुर्सियों पर कुछ नए हैं तथा उन्हें छह माह बाद ही आफ लाइन परीक्षा (विधानसभा चुनाव) में भी बैठना है। भाजपा के लिए चिंता का विषय तो यह भी है कि कार्यकाल के जिस चरण में विकास कार्य चरम पर होने थे, वह काल कोरोना की भेंट चढ़ गया। जो समय बचा है वह कुछ कर दिखाने के लिए कम है और इसी दरमियान चुनावी तैयारियों के मोर्चे पर भी जूझना है। शायद इसी माहौल के चलते भाजपा संगठन और सरकार ने तेजी से दौड़ना मुनासिब समझा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की दो दिनों तक चली बैठकों के बाद सक्रियता बढ़ी है। पार्टी विधायक और टिकट के दावेदार कुछ ज्यादा ही सक्रिय हुए हैं। कुछ के टिकट कटने की बात क्या हुई, वर्तमान विधायकों के साथ ही पार्टी के अन्य दावेदार जनता के बीच दिखने तथा दिखाने लगे हैं। प्रांतीय कार्यालय से लेकर मंडल कार्यालय तक चुनावी मोड में आ गए हैं।
ऐसा नहीं है कि प्रदेश में भाजपा दौड़ रही हो और कांग्रेस शांत हो। संगठन के स्तर पर फिसड्डी होने के बावजूद कांग्रेस मनोवैज्ञानिक बढ़त में नजर आ रही है। प्रदेश सरकार की कोरोनागत मजबूरियां, चुनाव से ठीक पहले एक के बाद एक मुख्यमंत्री बदलना, सत्ता विरोधी रुझान जैसे फैक्टर के बूते प्रदेश में बदहाल रही कांग्रेस आत्मविश्वास से भरी प्रतीत हो रही है। उत्तराखंड में दोनों में से किसी पार्टी को दोबारा मौका न मिल पाने के संयोग के चलते भी कांग्रेसी इस बार अपनी बारी का दावा कर रहे हैं। प्रदेश में कुछ बेहतर भविष्य की प्रत्याशा में कांग्रेस ने हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष भी बदल डाला। अनुभव में  अव्वल हरीश रावत को चुनाव प्रचार की बागडोर सौंपी गई है।
मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी का यह अघोषित चेहरा भी माना जा रहा है। पार्टी इस बार चुनावी रणनीति के मोर्चे पर भी विमर्श करती दिख रही है। हरीश रावत इसका खुलासा करने से भी गुरेज नहीं कर रहे कि वह प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ेंगे न कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के। उनकी लड़ाई मुख्यमंत्री से और मुख्यमंत्री पद के लिए है। भाजपा के राष्ट्रवाद का मुकाबला उत्तराखंडियत से करेंगे। क्षेत्रीय हित और भावनाओं को उभारने का काम कांग्रेस ने शुरू कर दिया है। जाहिर है कि मोदी को छेड़ने का जोखिम कांग्रेस नहीं लेने जा रही है। पिछली बार की ऐतिहासिक हार पर हुए मंथन में शायद यही नेक राय उभर कर आई हो। भाजपा ने प्रदेश भर में जन आशीर्वाद रैली निकाली तो कांग्रेस ने भी परिवर्तन रैली निकाल कर ताकत का अहसास कराया।
आम आदमी पार्टी यानी आप इस बार उत्तराखंड में अपनी मौजूदगी का अहसास करा रही है। विभिन्न जन मुद्दों पर सड़कों पर पसीना बहा रहे कार्यकर्ता भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी घेर रहे हैं। पारंपरिक कांग्रेसी वोट बैंक में सेंध लगाने की आप की कोशिशों के चलते कांग्रेस भी अलर्ट मोड में आ गई है। आप को उसी के हथियार से मात देने की नीति पर चल रही कांग्रेस ने प्रत्येक परिवार को दो सौ यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा भी कर दी है। आप मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर यह संदेश भी दे रही है कि वह प्रदेश में अपनी मौजूदगी के लिए नहीं, बल्कि सरकार बनाने के लिए लड़ रही है।