April 9, 2025

जांच एजेंसियों की निष्पक्षता



बैंकों का धन लूटकर विदेशों में धन शोधन करने वाले बड़े औद्योगिक घरानों की जांच को लेकर एजेंसियां आए दिन विवादों में घिरी रहती हैं।
भगोड़े वित्तीय अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजने में देश की बड़ी जांच एजेंसियां विफल रही हैं। ऐसी नाकामी के कारण जांच एजेंसियों पर चुनिंदा आरोपितों के खिलाफ ही कार्रवाई करने के आरोप भी लगते रहे हैं।  
पिछले दिनों कानपुर की रोटोमैक पेन कंपनी के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 750 करोड़ रु पये से अधिक के बैंक फ्रॉड का मामला दर्ज किया। इस कंपनी पर आरोप है कि इसने कई बैंकों से ऋण लेकर नहीं लौटाए। रिपोर्ट के अनुसार, 7 बैंकों के समूह के लगभग 2919 करोड़ रुपये इस कंपनी पर बकाया हैं। गौरतलब है कि बैंक फ्रॉड का यह मामला नया नहीं है। बैंक को चूना लगाने वाली यह कंपनी जून, 2016 में ही नॉन-परफॉर्मिग असेट्स (एनपीए) घोषित कर दी गई थी। छह साल बाद 2022 में जब सीबीआई ने इस कंपनी पर कार्रवाई शुरू की तब तक कंपनी के कर्ताधर्ता विक्रम कोठारी का निधन हो चुका था। जांच और कार्रवाई में देरी के कारण बैंकों को करोड़ों का चूना लग चुका था। देश में कोठारी जैसे अनेक लोग हैं, जो बैंक से लोन लेते हैं। यदि वो छोटे-मोटे लोन लेने वाले व्यापारी होते हैं, तो उनके खिलाफ बहुत जल्द कड़ी कार्रवाई की जाती है परंतु आम तौर पर देखा गया है कि बैंकों के धन की बड़ी चोरी करने वाले आसानी से जांच एजेंसियों के हत्थे नहीं चढ़ते। कारण बैंक अधिकारी और व्यापारी की सांठ-गांठ होता है।
ऋण लेने वाला व्यापारी बैंक के अधिकारी को मोटी रित के भार के तले दबा कर अपना काम करा लेता है, और किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। जब ऋण और उस पर ब्याज मिला कर रकम बहुत बड़ी हो जाती है, तो तेजी से कार्रवाई करने का नाटक किया जाता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। रोटोमैक कांड के आरोपियों की सूची में कानपुर का एक और समूह है, जिस पर जांच एजेंसियों की कड़ी नजर नहीं पड़ी। आरोप है कि इस समूह ने विभिन्न बैंकों के साथ सात हजार करोड़ से अधिक रुपये का घोटाला किया है। फर्जी कंपनियों का जाल बिछा कर बैंकों के साथ धोखा किया है।
इस समूह के मुख्य आरोपियों उदय देसाई और सरल वर्मा-जिनकी कंपनियां हैं एफटीए एचएसआरपी सोल्यूशन प्रा.  लि. और एग्रोस इम्पेक्स इंडिया लि.-रोटोमैक कांड के सह-अभियुक्त भी हैं। इनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। लेकिन कोविड और स्वास्थ्य कारणों के चलते इन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जमानत दी गई। गौरतलब है कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) में इस समूह के खिलाफ 2019 के बाद से विभिन्न बैंक 8 एफआईआर लिखा चुके हैं परंतु वर्मा और देसाई बंधुओं पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उदय देसाई ने दिल्ली उच्च न्यायालय में विदेश जाने की गुहार लगा कर एक याचिका दायर की। कोर्ट ने जुलाई, 2022 के अपने आदेश में याचिका रद्द करते हुए विशेष रूप से उल्लेख किया कि विभिन्न जांच एजेंसियों में लंबित अनेक गंभीर मामलों के बावजूद आरोपियों को एक ही बार पूछताछ के लिए बुलाया गया।
जांच एजेंसियों ने सघन जांच और पूछताछ की शुरुआत ही नहीं की। सोचने वाली बात है कि हजारों करोड़ के घोटाले के आरोपियों को एक ही बार बुलाकर जांच एजेंसियों को इत्मिनान हो गया कि आरोपियों को दोबारा पूछताछ के लिए नहीं बुलाना चाहिए? क्या एक ही बार में पूछताछ से जांच एजेंसियां संतुष्ट हो गई? आरोपी एक ही बार में एजेंसियों के ‘कड़े सवालों’ का संतोषजनक जवाब दे पाए? क्या जांच एजेंसियां आरोपियों से ऐसे ही केवल एक बार ही जांच और पूछताछ करती हैं? इन से कहीं छोटे मामलों में विपक्षी नेताओं या नामचीन लोगों के खिलाफ भी इन एजेंसियों का क्या यही रवैया रहता है? क्या इन आरोपियों की करोड़ों की संपत्ति को जब्त किया गया? क्या इनकी बेनामी संपत्तियों तक ये एजेंसियां पहुंच पाई? सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु के बाद जिस तरह बॉलीवुड के सितारों को लगातार पूछताछ के लिए बुलाया गया था क्या वैसा कुछ इनके भी साथ हुआ? अगर नहीं तो क्यों नहीं? केंद्र में जो भी सरकार रही हो, उस पर जांच एजेंसियों के दुरु पयोग का आरोप लगता रहा है। मौजूदा सरकार पर विपक्ष द्वारा यह आरोप लगता रहा है कि वो कुछ चुनिंदा लोगों पर, अपने राजनैतिक प्रतीद्वंद्वियों या अपने विरुद्ध खबर छापने वाले मीडिया प्रतिष्ठानों के खिलाफ इन एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही
जांच एजेंसियों में लंबित अन्य मामलों को छोड़ देसाई और वर्मा बंधुओं के मामले को ही लें तो यह बात सच साबित होती है। दिल्ली के ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ के प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर को जब एफटीए एचएसआरपी सोल्यूशन प्रा. लि. और एग्रोस इम्पेक्स इंडिया लि. के घोटालों से संबंधित सभी दस्तावेज मिले तो उन्होंने इन आरोपों को सही पाया। कपूर ने 6 मई, 2022 को एजेंसियों को सप्रमाण पत्र लिख कर देसाई और वर्मा द्वारा किए गए हजारों करोड़ रु पये के घोटालों की जांच की मांग की थी। ऐसे में प्रमुख जांच एजेंसियां शक के घेरे में आ जाती हैं। इन एजेंसियों पर विपक्ष द्वारा लगाए गए ‘गलत इस्तेमाल’ के आरोप सही लगते हैं। मामला चाहे छोटे घोटाले का हो या बड़े घोटाले का, एक ही अपराध के लिए दो मापदंड कैसे हो सकते हैं?
यदि आम आदमी या किसान बैंक को ऋण चुकाने में असमर्थ होता है, तो बैंक की शिकायत पर पुलिस या एजेंसियां कड़ी कार्रवाई करती हैं। उसकी दयनीय दशा की परवाह न करके कुर्की तक कर डालती हैं परंतु बड़े घोटालेबाजों के साथ सख्ती क्यों नहीं बरती जाती? घोटालों की जांच कर रही एजेंसियों का निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है। एक जैसे अपराध पर, आरोपी का रुतबा देखे बिना, अगर एक समान कार्रवाई होती है, तो जनता के बीच संदेश जाता है कि जांच एजेंसियां अपना काम स्वायत्तता और निष्पक्ष रूप से कर रही हैं। सिद्धांत यह होना चाहिए कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। चाहे वो किसी भी विचारधारा या राजनैतिक दल का समर्थक क्यों न हो। कानून अपना काम कानून के दायरे में ही करेगा।