नागरिकों को चुनावी बॉन्ड का सोर्स जानने का अधिकार नहीं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा
नई दिल्ली। देश के नागरिकों को राजनीतिक चंदे का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है। अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को यह बात कही। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत मिलने वाले धन के सोर्स के बारे में बताना सही नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत लोगों को इस बारे में सूचना पाने का अधिकार नहीं है। एससी में दाखिल की गई दलील में वेंकटरमणी ने कहा कि तार्किक प्रतिबंध की स्थिति नहीं होने पर ‘किसी भी चीज और प्रत्येक चीज’ के बारे में जानने का अधिकार नहीं हो सकता।
अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘जिस योजना की बात की जा रही है वह अंशदान करने वाले को गोपनीयता का लाभ देती है। यह इस बात को सुनिश्चित और प्रोत्साहित करता है कि जो भी अंशदान हो, वह काला धन नहीं हो। यह कर दायित्वों का पालन सुनिश्चित करता है। इस तरह, यह किसी मौजूदा अधिकार से टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करता।’ शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति, बेहतर या अलग सुझाव देने के उद्देश्य से सरकार की नीतियों की पड़ताल करने के संबंध में नहीं है।
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ याचिकाओं पर 31 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करने वाली है, जिनमें पार्टियों के लिए राजनीतिक वित्त पोषण की चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है। सरकार ने इस स्कीम को लेकर 2 जनवरी 2018 को नोटिस जारी किया था। चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या यहां स्थापित यूनिट की ओर से खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या फिर दूसरे लोगों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। अब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच उन 4 याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीआई (एम) की ओर से दायर याचिकाएं भी शामिल हैं।
रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट पहले कर
चुका है इनकार
सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा हैं। इससे पहले 20 जनवरी, 2020 को एससी ने 2018 चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। साथ ही, इस स्कीम पर रोक लगाने की मांग करने वाले NGO के आवेदन पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा गया था। चुनावी बॉन्ड हासिल करने का अधिकार उन्हीं राजनीतिक दलों के पास है जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत रजिस्टर्ड हैं। साथ ही, इनके लिए लोकसभा या राज्य विधान सभा के लिए डाले गए वोटों का कम से कम 1 प्रतिशत मत हासिल करना जरूरी है।