July 27, 2024

शिक्षा नहीं स्‍थानान्‍तरण पर है सरकार का फोकस


देहरादून ।  हमारे पुरखों की एक कहावत थी कि ‘अपने उजड़े हुए घर की फिक्र नहीं दूसरों के घर की चिंता में मरे जा रहे हैं ..  जी हां ऐसा ही कुछ हो रहा है  उत्तराखण्ड की स्कूली शिक्षा में। यहां सरकारी स्‍कूलों की हालत बदहाली के कगार पर जा पहुंची है तो वही सरकार अब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों को खोले जाने लिए सरकार भूमि से लेकर सभी मूलभूत सुविधाएं देने का वादा कर रही है। दुखद पहलू यह है कि तमाम तरह के दावे करने के बावजूद प्रदेश के सरकारी स्कूलों की स्थिति गिरती ही रही है। स्कूली शिक्षा बदहाली के कगार पर होने के बावजूद सरकार इस पर ध्यान देने के बजाय स्थानांतरण और शिक्षा नीति पर ही ज्यादा फोकस कर रही है। उसमें भी राजनेता अपने खास अध्‍यापकों को लाभ देने से पीछे नहीं हट रहे हैं। इस समय शिक्षा विभाग में स्‍थानान्‍तरण एक पूरा उद्योग बना हुआ है। तमाम नियमों को ताक पर रख कर यहां स्‍थानान्‍तरण किए जाते हैं। जिनको वास्‍तव में स्‍थानान्‍तरण की आवश्‍यकता है वह कहीं दूर दूर तक किसी सूची मे नहीं होते हैं और जिनकी पहुंच मंत्री या नेताओं के दरबार  तक है उनको मनचाहे स्‍कूलों में स्‍थानान्‍तरण मिल जाता है।   अलग उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद नीति नियंताओं से जनता ने यह उम्मीद रखी थी कि अब उनके बच्चों को बेहतर स्कूली शिक्षा के लिए शहरों में पलायन नहीं करना पड़ेगा लेकिन बीते तेईस वर्षों में स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है। इतना जरूर है कि अनेक स्कूलों में भवन आदि का तो निर्माण किया गया लेकिन बुनियादी सुविधाएं और स्कूली शिक्षा को बेहतर बनने के लिए जरूरी सुविधाओं की कमी निरंतर जारी रही है। यह भी गौर करने वाली बात है कि जब राज्य बना था तो इसकी

आबादी महज 75 करोड़ के आस-पास थी जो कि इन 23 वर्षों में बढ़कर सवा करोड़ से अधिक के लगभग हो चुकी है। इस बढ़ती आबादी के चलते स्कूलों की संख्या में भी इजाफा होना चाहिए था लेकिन पलायन की मार के चलते गांव के गांव खाली होते चले गए जिसके चलते 23 वर्षों के भीतर राज्य के 1,245 स्कूल या तो छात्रविहीन हो चुके हैं या उनको बंद कर दिया गया है। सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का है कि पहाड़ी जिलों के साथ साथ मैदानी जिलो में भी सरकारी स्कूल तेजी से बंद होते जा रहे हैं। राज्य के प्राथमिक शिक्षा विभाग के आंकड़ों को देखें तो जहां पर्वतीय जिलां के 1104 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक यानी जूनियर हाईस्कूल खाली पड़े हैं या उनको बंद कर दिया गया है तो वहीं 3 मैदानी जिलां में 95 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल खाली हो चुके हैं।
पहाड़ी जिलां में खाली या बंद पड़े स्कूलों की संख्या विभागीय आंकड़ों के अनुसार जिला रूद्रप्रयाग में 45, पौड़ी 265, पिथौरागढ़ में 131 टिहरी में 190, नैनीताल में 46, बगेश्वर में 49, अल्मोड़ा में 201 तथा चमोली में 115 एवं चंपावत में 37 और उत्तरकाशी जिले में 71 हो चुकी है। जबकि मैदानी जिलां में देहरादून में 78, उधमसिंह नगर में 7 और हरिद्वार जिले में 10 स्कूल ऐसे हैं जो बंद हो चुके हैं या इनमें छात्र संख्या शून्य है।
भवन विहीन महाविद्याल
प्रदेश के 12 राजकीय महाविद्यालयों के पास अपना भवन नहीं है। इनमें राजकीय महाविद्यालय शीतालाखेत जिला अल्मोड़ा, मासी अल्मोड़ा, रामगढ़ नैनीताल, हल्द्वानी नैनीताल, नानकमत्ता ऊधमसिंह नगर, गदरपुर ऊधमसिंह नगर, मोरी उत्तरकाशी, खाड़ी टिहरी, पावकी देवी नई टिहरी, भूपतवाला हरिद्वार व सिद्धोवाला देहरादून के पास अपना भवन नहीं है।
तने छात्रों के लिए नहीं है फर्नीचर
प्रदेश में अल्मोड़ा जिले के 2,135, बागेश्वर के 848, चमोली के 2,891, चंपावत के 788, देहरादून के 2,432, हरिद्वार के 730, नैनीताल के 1,805, पौड़ी के 1,382, पिथौरागढ़ के 1,937, रुद्रप्रयाग के 1,236, टिहरी के 2,349, ऊधमसिंह नगर के 1,341 एवं उत्तरकाशी के 1,654 छात्र-छात्राओं के लिए फर्नीचर नहीं हैं।