एक मैच हारे और विश्व कप हार गए!
भारत के 140 करोड़ लोगों की उम्मीदें टूट गईं। भारत एकदिवसीय क्रिकेट के विश्व कप का फाइनल मुकाबला हार गया। भारत को यह विश्व कप जीतना था। भारतीय टीम चैम्पियन की तरह खेल रही थी। दुनिया की जो नौ टीमें विश्व कप खेलने भारत आई थीं उन सभी टीमों को भारत ने लीग मुकाबले में हराया था। ऑस्ट्रेलिया को भी अपने पहले मैच में ही छह विकेट से हराया था। लीग राउंड में भारत ने अपने सभी नौ मैच जीते थे और शानदार प्रदर्शन कर रही न्यूजीलैंड की टीम को सेमी फाइनल में हरा कर परफेक्ट टेन स्कोर के साथ फाइनल में प्रवेश किया था। लेकिन भारतीय टीम फाइनल नहीं जीत सकी। जिस ऑस्ट्रेलिया की टीम को भारत ने छह विकेट से हराया था उसने छह विकेट से भारत को हरा कर छठी बार विश्व कप जीत लिया।
फाइनल मुकाबले से पहले भारत की मौजूदा टीम को अजेय माना जा रहा था। क्रिकेट के पंडित इसकी तुलना वेस्टइंडीज की सर्वकालिक महान टीम से कर रहे थे। भारत के पास टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले विराट कोहली थे तो एक विश्व कप मुकाबले में तीन बार पांच विकेट लेने का शानदार कारनामा करने वाले गेंदबाज मोहम्मद शमी थे। रोहित शर्मा की धुआंधार बल्लेबाजी से भारत पावर प्ले में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली टीम बनी थी। किसी भी देश के गेंदबाज एक भी मैच में भारत की पूरी टीम को आउट नहीं कर पाए थे। भारत के तेज गेंदबाजों की तिकड़ी- मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज के सामने हर टीम का टॉप ऑर्डर धराशायी हो रहा था। लेकिन रविवार का दिन न भारतीय बल्लेबाजों का था और न गेंदबाजों का। ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय बल्लेबाजों को रन नहीं बनाने दिया और भारतीय गेंदबाज उनकी बल्लेबाजी के आगे बेअसर रहे।
कहने को कहा जा सकता है कि खेल में हार-जीत होती रहती है और जो टीम बेहतर खेली वह जीती। यह भी कहा जा सकता है कि आज भारत का दिन नहीं था। जानकार औसत के सिद्धांत का भी हवाला देंगे और बताएंगे कि लगातार 10 मैच जीतने के बाद औसत का सिद्धांत काम कर गया। दूसरी ओर जो टीम थी वह गिरते-पड़ते फाइनल में पहुंची थी। ऑस्ट्रेलिया इस टूर्नामेंट में अपने दोनों पहले मैच में हार गई थी। सेमीफाइनल में भी दक्षिण अफ्रीका के 220 रन के लक्ष्य का पीछा करने में भी ऑस्ट्रेलिया की हालत खराब हो गई थी। लेकिन हारते-जीतते फाइनल में पहुंची ऑस्ट्रेलिया की टीम ने शानदार खेल का प्रदर्शन किया। उसके खिलाडिय़ों के ऊपर विश्व कप के फाइनल का दबाव पूरे मैच में नहीं दिखा और न नरेंद्र मोदी स्टेडियम में मौजूद एक लाख 30 हजार दर्शकों के एकतरफा भारत का समर्थन करने का दबाव उनके ऊपर दिखा। पूरी टीम एक लय में खेली और छठी बार विश्व विजेता बनी।
महान क्रिकेटर सुनील गावसकर ने फाइनल मैच से पहले अपने विश्लेषण में बताया था कि बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में भारत और ऑस्ट्रेलिया समान रूप से मजबूत हैं, इन दोनों में जीतेगा वह जो अच्छी फील्डिंग करेगा। उनकी बात बिल्कुल सही साबित हुई। ट्रैविस हेड ने भारतीय कप्तान रोहित शर्मा का जो कैच पकड़ा वह मैच का टर्निंग प्वाइंट बना। ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी के धुर्रे बिखेर रहे रोहित के कैच से लगा कि यह भारत का दिन नहीं है। फिर वही ट्रैविस हेड 120 गेंदों में 137 रन बना कर ऑस्ट्रेलिया की जीत के हीरो बने।
फाइनल मुकाबले सहित पूरे टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया ने जो जज्बा दिखाया वह काबिले तारीफ रहा। पहले दो मैच हारने के बाद ऑस्ट्रेलिया की टीम ने अगले सभी सात मैच जीते। ऑस्ट्रेलिया के जज्बे की बात करते हुए अफगानिस्तान के खिलाफ हुए मैच को याद करना होगा, जिसमें ग्लेन मैक्सवेल ने चोट लगने के बाद भी 202 रन की पारी खेली थी और अपनी टीम को जीत दिलाई थी।
बहरहाल, चैम्पियन की तरह खेल रही भारतीय टीम के लिए यह आत्ममंथन का समय है। भारतीय टीम को ऐसा क्या हो गया है कि वह आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल नहीं जीत पा रही है? गौर करने की बात है कि 2013 के बाद से भारत कोई भी आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीत पाया है। आखिरी बार 2013 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारत ने चैम्पियंस ट्रॉफी जीती थी। ऐसा लग रहा था कि 10 साल से चल रहा ट्रॉफी का यह सूखा इस बार समाप्त होगा और भारत विश्व कप जीतेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। क्रिकेट में कोई भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। हो सकता है कि आगे भारत जीतना शुरू करे और अगला विश्व कप भी जीते। लेकिन दो लोगों को इस विश्व कप की हार हमेशा सालती रहेगी। वो दो लोग हैं भारतीय टीम के कोच राहुल द्रविड और कप्तान रोहित शर्मा। राहुल द्रविड किसी विश्व विजेता टीम का हिस्सा नहीं रहे हैं। उनके साथी क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर 2011 में विश्व कप की ट्रॉफी अपने हाथ में उठा कर रिटायर हुए। द्रविड को यह मौका नहीं मिला। लग रहा था कि इस बार बतौर कोच उनको यह मौका मिलेगा लेकिन इस बार भी किस्मत दगा दे गई। इसी तरह रोहित शर्मा को 2011 में विश्व कप जीतने वाली टीम में खेलने का मौका नहीं मिला था। उसके बाद यह उनका तीसरा विश्व कप था और उम्मीद की जा रही थी कि वे ट्रॉफी हाथ में उठाएंगे। लेकिन भारत की हार ने उनका भी सपना चकनाचूर कर दिया। उनकी उम्र 36 साल है और वे अगला विश्व कप नहीं खेल पाएंगे। सो, विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा बनने का उनका भी सपना अधूरा रह गया।