November 22, 2024

पहाड़ से लोग मैदान की ओर तो बाघ पहाड़ों की तरफ कर रहे हैं पलायन


हल्द्वानी । उत्तराखंड में लोग सुविधाओं की तलाश में मैदानों की तरफ और बाघ एकांत की खातिर पहाड़ों की ओर पलायन कर रहे हैं। कुमाऊं में कॉर्बेट नेशनल पार्क और इससे सटे जंगलों में बाघों की बढ़ती संख्या और जंगल के भीतर जीने के लिए चल रहा जबरदस्त संघर्ष इसकी बड़ी वजह है। आंकड़े बताते हैं कि इस साल अब तक 19 बाघों की मौत हो चुकी है। इसमें अधिकांश जंगल में जीने के लिए हुए संघर्ष की भेंट चढ़े हैं। यही वजह है वनराज अब रहने के लिए नए ठौर खोज रहे हैं। साल 2016 में पिथौरागढ़ के अस्कोट में पहली बार 12 हज़ार फीट की ऊंचाई पर बाघ देख वन्यजीव विशेषज्ञ हैरत में पड़ गए थे। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक इतनी ऊंचाई पर बाघ की ये पहली दस्तक थी। इसके बाद 2021 दिसंबर में बाघ ने पहाड़ी जिले चम्पावत के ढकना गांव में धमक दिखाई। नैनीताल के नौकुचियाताल में भी बाघ कैमरे में कैद हो चुका है। अब बाघ के कदम जागेश्वर क्षेत्र में पड़े हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ इस बदलते व्यवहार पर अध्ययन की बात कह रहे हैं।
चार किलोमीटर के दायरे में रहने को मजबूर :  उत्तराखंड में वर्तमान में बाघों की संख्या 560 है। तराई भाबर क्षेत्र में इनके फलने-फूलने को सभी जरूरी संसाधन हैं। यही वजह है, कॉर्बेट नेशनल पार्क के 1288 वर्ग किमी क्षेत्र में 260 बाघ हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बाघ करीब 40-50 किमी के क्षेत्रफल में विचरण करता है। लेकिन कॉर्बेट में बाघों की संख्या के हिसाब से ये दायरा महज 4 किमी तक सीमित हो जाता है।
अब पर्वतीय इलाकों में हो सकती है गणना :  सामान्य तौर पर माना जाता है कि पर्वतीय और ज्यादा ठंड वाले इलाकों में बाघ नहीं पाए जाते हैं। इसी वजह से बाघों की गणना के दौरान इन इलाकों को छोड़ दिया जाता है। माना जा रहा है अब पहाड़ी जिलों में भी बाघों की गणना की जा सकती है।
आपसी संघर्ष में मर रहे :  राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के आकंड़ों के मुताबकि 2022 में 121 बाघ की मौत हुई थी वहीं 2023 में अगस्त तक ही यह आंकड़ा 129 पहुंच गया। इसमें 72.03 प्रतिशत जैसे आपसी संघर्ष में हुईं।
बाघ का जागेश्वर जैसे क्षेत्र में दिखना आश्चर्य की बात है। इसके कारणों को तलाशने की जरूरत है।   – बाबू लाल, डीएफओ, हल्द्वानी वन प्रभाग।