November 22, 2024

नरेंद्र भाई की फि़क्र में घुलता मैं


मैं अपने माथे पर हाथ रखे कई दिनों से इस फि़क्र में घुला जा रहा हूं कि अगर नरेंद्र भाई को 2019 में जीती सारी सीटें दोबारा मिल भी जाएं तो अपने 370 का आंकड़ा पूरा करने के लिए 67 अतिरिक्त सीटों का जुगाड़ वे करेंगे कैसे? अपनी तिलस्मी टोपी से 67 अतिरिक्त खरगोश प्रकट करने के लिए अब और कौन-सी दिहाड़ी बाकी है, जो उन्होंने अब तक नहीं की है?
नरेंद्र भाई मोदी ने ऐलान कर दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 370 सीटें मिलेंगी और एनडीए 400 पार करेगा। कितना पार, यह नहीं बताया। सो, हम मान लें कि एनडीए को 401 सीटें तो मिलेंगी ही। तो क्या एनडीए में भाजपा के 37 सहयोगी दलों को कुल मिला कर 31 लोकसभा सदस्यों की संख्या पर ही अपने मन मसोसने पड़ेंगे? नहीं, संसद में सीना ठोक कर यह ऐलान करते वक़्त नरेंद्र भाई का मतलब यह कतई नहीं रहा होगा। सहयोगी दलों के अभी 46 सदस्य हैं। उन के अलावा 3 निर्दलीय भी एनडीए में हैं। तो नरेंद्र भाई यह तो चाहते ही होंगे कि इस बार भी कम-से-कम ये 49 सीटें तो उन के सहयोगी जीतें ही।
इस हिसाब से तो एनडीए 419 सीटें जीत कर आएगी। अभी चूंकि एनडीए में शामिल 22 राजनीतिक दलों का एक भी सदस्य लोकसभा में नहीं है, इसलिए उस की 339 सीटें ही हैं। अब अगर नरेंद्र भाई की इस ख्वा़हिश ने भी ज़ोर मारा कि इन 22 सहयोगियों की भी एक-एक सीट तो अगली बार ज़रूर आ जाए तो समझ लीजिए कि एनडीए को मई में 441 सीटें मिलने वाली हैं। 370 सीटें तो नरेंद्र भाई भाजपा की झोली में डाल ही चुके हैं, सो, सहयोगियों के भाग्य में 71 सीटों का छींका उन्होंने टूटने के लिए छोड़ दिया है।
हालांकि अभी लोकसभा में भाजपा के 290 सदस्य हैं, लेकिन पिछले चुनावों में वह 303 सीटें जीती थी। तो आज के हिसाब से 370 सीटें जीतने के लिए नरेंद्र भाई को 80 अतिरिक्त सीटों का इंतज़ाम करना होगा और पिछली बार के हिसाब से 67 का। मैं नरेंद्र भाई की इस बलवती इच्छा का समर्थन करूं-न-करूं, उन की इस पुरज़ोर ख्वा़हिश का सम्मान ज़रूर करता हूं, इसलिए मुझे पिछले कई दिनों से यह चिंता खाए जा रही है कि आखिऱ नरेंद्र भाई को ये 67 या 80 अतिरिक्त सीटें मिलने कहां से वाली हैं?

सात राज्य और दो केंद्रशासित क्षेत्र ऐसे हैं, जहां की सभी सीटें भाजपा 2019 में जीती थी। गुजरात की छब्बीसों, हरियाणा की दसों, हिमाचल प्रदेश की चारों, दिल्ली की सातों, उत्तराखंड की पांचों, अरुणाचल प्रदेश की दोनों, त्रिपुरा की दोनों, चंडीगढ़ और दमन-दीव की एक-एक सीट भाजपा को मिली थीं। इन 58 सीटों पर भाजपा का आंकड़ा बढ़ ही नहीं सकता। पांच प्रदेश ऐसे हैं, जहां से भी तकऱीबन सारी सीटें पिछली बार भाजपा अपनी गठरी में बांध कर ले गई थी। मध्यप्रदेश की 29 में से 28, राजस्थान में 25 में से 24, छत्तीसगढ़ में 11 में से 9, कर्नाटक की 28 में से 25 और झारखंड की 14 में से 11 सीटें भाजपा ने जीती थीं। इन 107 सीटों पर भाजपा इस बार 10 सीटें बढ़ाने की अधिकतम गुंज़ाइश रखती है। यानी कुल मिला कर 165 सीटें ऐसी हैं, जो सारी-की-सारी भी भाजपा को मिल जाएं तो भी उस के आंकड़ों में 10 का ही इज़ाफ़ा होगा।
दस राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र हैं, जिन में भाजपा को पिछली बार एक भी सीट नहीं मिली थी। अंडमान-निकोबार, दादरा-नगर हवेली, सिक्किम, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, मिज़ोरम और नगालैंड की 7 सीटों में से अगर इस बार सब भाजपा को मिल जाएं तो यह बढ़ोतरी हो जाएगी 17 सीटों की। मगर यह इसलिए आसान नहीं है कि पिछली बार उसे लक्षद्वीप में चौथाई और सिक्किम में आधा फ़ीसदी वोट भी नहीं मिले थे। गोआ, मणिपुर और मेघालय में भाजपा को दो-दो में से एक-एक सीट मिली थी। नरेंद्र भाई के मन का मान रखने के लिए हम मान लेते हैं कि इस बार वे तीन की जगह छहों सीटें जीत जाएंगे। तो अतिरिक्त सीटों की यह बढ़ोतरी पहुंच जाएगी 20 के आंकड़े पर। जम्मू-कश्मीर में भी भाजपा को अगर तीन के बजाय छहों सीटें मिल जाएं तो अतिरिक्त सीटें हो जाएंगी 23।
असम में भाजपा 14 में से 9 सीटें जीती थी। पंजाब में 13 में से 2 जीती थी। उड़ीसा में 21 में से 8 जीती थी। इन 48 में से 19 के अपने आंकड़े में वह कितनी बढ़ोतरी कर लेगी? उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें पिछली बार भाजपा को मिली थीं। वहां भव्य-दिव्य राम मंदिर अगर नरेंद्र भाई को इस बार सारी भी दिला दे तो 12 सीटें ही तो बढ़ेंगी। बिहार में क्या भाजपा इस बार 40 में से 17 सीटें जीत जाएगी? क्या उसे महाराश्ट्र की 48 में से 23 सीटें मिल पाएंगी? क्या वह पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीत पाने की हालत में है? इन 210 लोकसभा क्षेत्रों में से क्या मौजूदा 120 में भी इस बार भाजपा की कोई आंधी चलती आप को दिखाई दे रही है?
एक कर्नाटक को छोड़ कर दक्षिण भारत के बाकी चार राज्यों में भाजपा को पिछली बार कुल चार सीटें मिली थीं। चारों तेलंगाना से। इस बार वे भी मुश्कि़ल दिखाई दे रही हैं। आंध्र प्रदेश में भाजपा 25 में से 24 सीटों पर लड़ी थी और सब हार गई। केरल की 20 में से 15 पर लड़ी थी। सब हार गई। तमिलनाडु की 38 में से 5 लड़ी थी। सब हार गई। इन 83 सीटों में से इस बार वह कितनी जीत जाएगी? दक्षिण भारत के पांच राज्यों की 111 सीटों में भाजपा की कहीं कोई बढ़त होने के आसार आप को लगते हैं क्या? मुझे तो उसे 15 सीटों के आसपास का नुक़्सान ही होता दिखाई दे रहा है।
सो, मैं अपने माथे पर हाथ रखे कई दिनों से इस फि़क्र में घुला जा रहा हूं कि अगर नरेंद्र भाई को 2019 में जीती सारी सीटें दोबारा मिल भी जाएं तो अपने 370 का आंकड़ा पूरा करने के लिए 67 अतिरिक्त सीटों का जुगाड़ वे करेंगे कैसे? अपनी तिलस्मी टोपी से 67 अतिरिक्त खरगोश प्रकट करने के लिए अब और कौन-सी दिहाड़ी बाकी है, जो उन्होंने अब तक नहीं की है?
फिर मुझे यह चिंता भी भीतर-ही-भीतर सता रही है कि नरेंद्र भाई ने अपनी भाजपा को 370 सीटें दिलाने के अलावा एनडीए को भी 400 का आंकड़ा कुदाने का संकल्प ले तो लिया है, मगर इस बार वे नीतीश कुमार को 17 और एकनाथ शिंदे को 13 सांसद कैसे दिला पाएंगे? इन 30 में जऱा-सी भी कमी हुई तो एनडीए की तादाद 400 का अंक कैसे छुएगी? 10 प्रदेशों में दुबके बाकी छुटुर-पुटर दलों के अभी एनडीए में 17 लोकसभा सदस्य हैं। क्या वे सत्रहों अपनी पगड़ी इस बार बचा पाएंगे?
सो, 12 प्रदेशों में ख़ुद भाजपा की और 6 में सहयोगियों की सरकारें होते हुए भी लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र भाई की अंक-मनोकामना आखिऱ कैसे पूरी होगी? अगर कहीं पिछली बार 165 में से भाजपा को 155 सीटें देने वाले प्रदेशों ने इस बार अपना मुंह बिचका लिया और नरेंद्र भाई की ज़्यादा नहीं, एक चौथाई सीटों का भी, रंग बदल दिया तो एक झटके में भाजपा गिर कर स्पष्ट बहुमत से नीचे 263 पर पहुंच जाएगी। नहीं मानने वाले नहीं मानेंगे, मगर ज़मीनी परिदृश्य तो और भी बदहाल है। इसलिए मैं अपनी इस फि़क्र को धुएं में उड़ाऊं तो कैसे उड़ाऊं कि नरेंद्र भाई ये 67-80 पूरक सीटें लाएंगे कहां से और नहीं ला पाएंगे तो उन की गारंटी की गारंटी नाकाम होने से उन के आराधकों पर क्या गुजऱेगी?