‘दिखावा’ तेजी से फैलता एक सामाजिक रोग
किसी भी चीज का दिखावा करने की आपको कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इससे क्षणिक फायदा मिलता है। हमें कुछ भी काम करना है वह दूरदृष्टि को ध्यान में रखते हुए करना है। अपनी क्षमताओं को बढ़ाइए और यह सब पॉसिबल होगा जब आप अच्छी बातों को अपने जीवन में उतार लेंगे। यह आप जीवन के किसी भी पड़ाव पर कर सकते हैं तो फिर दिखावे की क्या जरूरत है? इंसान को केवल अपना मानसिक संतुलन बराबर रखते हुए आत्मविश्वास की चरम प्रकाष्ठा पर पहुंचना होगा। इसमें पहुंचने का सबसे आसान तरीका है कि वह अपने को सादा जीवन और उच्च विचार वाली कहावत पर चरितार्थ करें। हमें जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ अपने अंदर बदलाव करने होंगे। वह सब आसानी से कर सकते हैं सिर्फ सोच को सकारात्मक बना ले। आज का युग आधुनिक युग है, जहां हर क्षेत्र में विकास देखने को मिलता है। पूरी दुनिया पर आधुनिकता का भूत सवार हो चुका है। आधुनिकता का सीधा संबंध विकास से दिखाई देता है। उद्योग से लेकर प्रयोग तक यह संसार बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहते हैं हम इस विकास की दौड़ में हम मानवता को भूल चुके हैं। हम एक बार भी पीछे मुड़कर देखना भी नहीं चाहते हैं, जो एक बड़ी भूल साबित हो सकती है।
कहते हैं कि इतिहास अपने आपको दोहराता है, जो हमें समय-समय पर देखने को भी मिलता है। इतना होने के बावजूद हम कुछ सीखने के मूड़ में नहीं हैं। आज के दौर में आनलाइन प्लेटफार्म पर निजी जीवन का अनावश्यक दिखावा इस कदर बढ़ गया है कि हम जो खाएं, पीएं, घूमने जाएं, उसे आनलाइन प्लेटफार्म पर डालना जैसे हमारी ड्यूटी में शामिल हो गया है। नई चीज खरीदते हैं तो उसे फेसबुक पर अपलोड करना नहीं भूलते। परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के दौरान खींची निजी तस्वीरों को भी लोग साझा करने से नहीं चूकते। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ेगी, आपके आचार, विचार और व्यवहार में गंभीरता आएगी। तब कभी आप सोचेंगे कि अगर मैं 300 रुपए की घड़ी पहनूं या 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। सोने के लिए एक बेड ही पर्याप्त होगा। फिर आपको ये भी लगेगा कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुंचूंगा। या फिर रेलवे के स्लीपर क्लास में यात्रा करो या एसी में, ट्रेन एक ही समय में दोनों को पहुंचाएगी। इसलिए अपनी आवश्यक आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए न कि व्यर्थ के दिखावे पर फोकस करना चाहिए।
आजकल केवल रहन-सहन में ही नहीं, बल्कि रिश्तों के मामले में भी लोग नकली व्यवहार करने लगे हैं। यहां तक कि प्यार जैसी कोमल और सच्ची भावना में भी अब दिखावे की मिलावट हो रही है। आज की युवा पीढ़ी में रिश्तों के प्रति पहले जैसी ईमानदारी नजर नहीं आती। लोग मन ही मन दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं, पर उनके सामने अच्छा बने रहने का ढोंग करते हैं। झूठ की बुनियाद पर टिके ऐसे रिश्ते नकली और खोखले होते हैं, इसीलिए वे जल्द ही टूट भी जाते हैं। हमें अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाए बहुत ज्यादा खुश कैसे रहना चाहिए ये सिखाना चाहिए। हमें भौतिक वस्तुओं के महत्व को देखना चाहिए उसकी कीमत को नहीं। दिखावे की जिंदगी से हमें बाहर आना होगा। आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि उनका यह समय पठन-पाठन व ज्ञानअर्जन का है। ऐसे में जरूरी है कि हम फेसबुक, वाट्सएप पर सिर्फ अपने काम की बातों से ही सरोकार रखें। वाट्सएप पर रिश्ते बनते हैं पर बिगड़ते भी हैं। गलतफहमियां होती हैं। अंतत: रिश्ते बिखरते देर नहीं लगती। बच्चों को अभिभावक जितना समय देंगे, बच्चे उतने ही संस्कारवान बनेंगे। एकल परिवार की विभीषिका झेलने पर मजबूर बच्चे एकाकीपन का समाधान मोबाइल पर ढूंढ़ने लगते हैं। संवादहीनता से बचाव, बच्चों की बातों को सुनना व उनकी दिनचर्या का भाग होना ही उन्हें आपके प्रति आकर्षित करेगा।हमें यह जानना होगा कि अगर समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो इसकी वजह क्या है? आज लोगों को पहले की तुलना में पैसे कमाने के ज्यादा विकल्प मिल रहे हैं। पहले लोग अपनी सीमित आमदनी में भी संतुष्ट रहना जानते थे। अब वे सोचते हैं कि हमारे पास और क्या होना चाहिए, जिससे समाज में हमारा स्टेटस ऊंचा नजर आए। काफी हद तक ईएमआई की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढ़ावा दिया है। दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर लोगों के मन में लालच की भावना जाग जाती है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है। हम अपनी सभी गतिविधियों को वहां साझा करके चर्चा में बने रहना चाहते हैं।