September 8, 2024

हरेला पर्व की शुभकामनाएं : जी रया, जागि रया । आखरीआंख डिजिटल मीडिया

उत्तराखंड प्राचीनकाल से ही अपनी परम्पराओं, संस्कृति एवं लोक पर्वों के माध्यम से प्रकृति के प्रति प्रेम व सद्भावना को दर्शाता रहा है. यहां के रीति-रिवाज भी कुछ ऐसे हैं जो यहां के बाशिंदों को प्रकृति के प्रति अपने प्रेम और ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करने पर मजबूर कर देते हैं. इन्हीं लोक पर्वों में से एक है हरेला पर्व या हरेला त्यौहार.
सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश व कान पर रखते हैं।
घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है।
घर के बुजुर्गों द्वारा अपने बच्चों व अन्यों को हरेला लगाते समय यह आशिष्वचन दिया जाता हैं।

जी रया, जागि रया,
यो दिन, यो महैंण कैं नित-नित भ्यटनै रया ।
दुब जस पगुर जया,
धरती जस चाकव, आकाश जस उच्च है जया ।
स्यूं जस तराण ऐ जौ, स्याव जसि बुद्धि है जौ ।
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
जी रया, जागि रया ।

और पुनः एकबार आखरीआंख डिजीटल मीडिया के प्रबुद्ध पाठकों , शुभचिंतको व सभी स्नेही मित्रों को सपरिवार अशेष शुभकामनाएं

अर्जुन राणा

संपादक

आखरीआंख डिजिटल मीडिया