सरकार की अनदेखी से भड़के वन पंचायत सरपंच — 4 नवंबर को अल्मोड़ा में करेंगे प्रदर्शन
अल्मोड़ा । उत्तराखंड की वन पंचायतें अब सरकार की अनदेखी से तंग आ चुकी हैं। कुमाऊं मंडल के सभी वन पंचायत सरपंचों ने एकजुट होकर 4 नवंबर को अल्मोड़ा में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। इस दौरान वन विभाग के कुमाऊं मुखिया और जिलाधिकारी अल्मोड़ा के माध्यम से सरकार को ज्ञापन सौंपा जाएगा। प्रदर्शन को लेकर पुलिस प्रशासन को भी सूचित किया जा चुका है।
सरकार के रवैये से नाराज़ सरपंच
वन पंचायत सरपंचों का कहना है कि राज्य सरकार लगातार उनके अधिकारों की उपेक्षा कर रही है। जंगलों की सुरक्षा, वन संपदा के संरक्षण और ग्रामीणों की आजीविका में अहम भूमिका निभाने के बावजूद वन पंचायतों को न तो पर्याप्त आर्थिक सहायता मिल रही है, न ही निर्णय लेने की स्वतंत्रता।
सरपंचों का आरोप है कि वन विभाग के अधिकारी कई बार पंचायतों के कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप करते हैं और पंचायतों को केवल औपचारिकता तक सीमित कर दिया गया है।
मुख्य माँगें
सरपंचों ने सरकार से निम्न प्रमुख माँगें रखी हैं —
- वन पंचायतों को वित्तीय अधिकारों का हस्तांतरण — ताकि वे अपने स्तर पर विकास और संरक्षण संबंधी योजनाएँ लागू कर सकें।
- वन विभाग के अत्यधिक हस्तक्षेप पर रोक — पंचायतों को स्वायत्त रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाए।
- वन पंचायत सरपंचों को मानदेय और प्रशिक्षण सुविधा — ताकि वे योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू कर सकें।
- वन उत्पादों से प्राप्त आय का हिस्सा पंचायतों को — जिससे स्थानीय जनता को आर्थिक लाभ मिल सके।
- जंगल संरक्षण में पंचायतों की भूमिका को नीति स्तर पर मान्यता — ताकि उन्हें निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी मिल सके।
“सिर्फ घोषणाएँ, ज़मीनी कार्रवाई नहीं”
एक सरपंच ने नाराज़गी जताते हुए कहा, “सरकार हमारी भूमिका की तारीफ तो करती है, लेकिन जब सहयोग की बात आती है, तो चुप्पी साध लेती है। हमने जंगल बचाए हैं, लेकिन हमारी पंचायतें आज खुद अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं।”
एकता की मिसाल बनेगा यह आंदोलन
अल्मोड़ा में होने वाला यह प्रदर्शन अब वन पंचायत सरपंचों की एकता का प्रतीक माना जा रहा है। सरपंचों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैलाया जाएगा।
