November 22, 2024

तेल के खेल पर हो नकेल, भारत बनाये अमरीका पर दबाब

भारत समेत आठ देशों को ईरान से कचा तेल खरीदने की छूट की मियाद खत्म करने के अमेरिकी फरमान के बाद भारत को सभी विकल्पों पर विचार करना चाहिए। अमेरिकी फैसले के पीछे जहां कूटनीतिक निहितार्थ हैं वहीं वैश्विक तेल बाजार में अमेरिका व रूस के वर्चस्व करने की मंशा भी है। ईरान पर प्रतिबंध तथा वेनेजुएला, अंगोला व लीबिया में जारी अस्थिरता के चलते वैश्विक बाजार में जो तेल आपूर्ति में कमी आएगी, उसका खतरा तेल के बढ़े दामों के रूप में विकासशील देशों को भुगतना पड़ सकता है। दरअसल, शेल गैस क्रांति के बाद जहां अमेरिका कचे तेल व प्राकृतिक गैस में आत्मनिर्भर हुआ, उससे बढ़कर वह निर्यातक के रूप में उभरा है। वहीं रूस भी कचे तेल का उत्पादन बढ़ाकर वैश्विक तेल स्पर्धा में शामिल है। महाशक्तियां चाहती हैं कि ईरान के तेल निर्यात पर नियंत्रण करके पेट्रोलियम कारोबार के जरिये वैश्विक राजनीति को प्रभावित करें। चीन, भारत, दक्षिण कोरिया, जापान, इटली, ग्रीस, टर्की आदि देश ईरान से तेल खरीदने वाले बड़े देश हैं। जिन पर अमेरिका ईरान से तेल न खरीदने का दबाव बना रहा है।
ईरान भारत को कचा तेल निर्यात करने वाला तीसरा बड़ा देश है। ईरान भारतीय मुद्रा में भी तेल निर्यात करता है व कुछ माह भुगतान की छूट भी देता है। ईरान के साथ भारत के सामारिक हित जुड़े हैं। खासकर चाबहार बंदरगाह में निवेश व साझेदारी से। दोनों देशों में पुराने सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। भारत में ईरान के बाद सबसे यादा संया में शिया मुस्लिम हैं। ऐसे में भारत को अमेरिकी धौंसपट्टी के दबाव में न आकर अपने हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। भले ही अमेरिका ईरान पर ये आर्थिक प्रतिबंध डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ओबामा कार्यकाल में किये गये परमाणु समझौते को निरस्त करके नये समझौते के लिये दबाव बनाने के लिये लगा रहा हो, इसके अलावा वह अपने परम मित्र इस्राइल और सऊदी अरब के कूटनीतिक हितों की रक्षा के लिये भी दबाव बना रहा है। अमेरिका ईरान को मध्य-पूर्व में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरता नहीं देखना चाहता। साथ ही सीरिया व यमन में ईरानी हस्तक्षेप को रोकना चाहता है। ऐसे में भारत को उन देशों से तेल आयात को प्राथमिकता देनी चाहिए जहां से हमें रुपये में भुगतान की सुविधा हो और हमारी शर्तों को प्राथमिकता दी जाती हो, जिसकी हमारी अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका बनती है। भारत व अन्य देशों को अमेरिकी दबाव के विरुद्ध दबाव बनाना चाहिए।