आयुर्वेद का अंग है मर्म चिकित्सा विज्ञानः डा. सुनील जोशी
हरिद्वार, ( आखरीआंख ) वैदिक आयुर्विज्ञान प्रतिष्ठान संस्थान नंदीपुरम में मृत्युंजय मिशन के तत्वाधान में 5 दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन प्रसिद्ध मर्म चिकित्सक डा. सुनील जोशी ने प्रतिभागियों को मर्म चिकित्सा की पद्धति, सिद्धान्त और इसकी उपयोगिता के विषय में व्याख्यान देते हुए कहा कि मर्म विज्ञान चिकित्सा विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है, जो आयुर्वेद का ही एक अंग है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के शरीर में 107 मर्म बिन्दु होते हैं, जिन्हें उत्प्रेरित कर विभिन्न असाध्य रोगों का मर्म चिकित्सा पद्धति से इलाज संभव हैं। डा. प्रांजल जोशी ने एलोपैथिक चिकित्सा और मर्म चिकित्सा के मध्य सम्बन्ध जोड़ते हुए कहा कि एलोपैथिक चिकित्सक अगर मर्म चिकित्सा को अपने व्यवहार में लाये तो रोगियों को निःशुल्क प्रभावी तथा बिना किसी साइड़ इफेक्ट के चिकित्सा प्रदान की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मर्म चिकित्सा सर्वसुलभ सार्वभौमिक और दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत उपयोगी है, जहां पर चिकित्सा का अभाव है, कनाड़ा से आये डा. ज्ञान प्रकाश ने अपने व्याख्यान में देश-विदेशों में बढ़ते हुए मर्म चिकित्सा की लोकप्रियता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डा.सुनील जोशी के प्रयासों से मर्म चिकित्सा का प्रचार-प्रसार अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य यूरोपिय देशों में तेजी से हो रहा है। उन्होंने कहा कि मर्म चिकित्सा दैविक विद्या है, जो प्रारब्ध से प्राप्त होती है, देश-विदेश से आये 140 प्रतिभागियों को डा. मयंक जोशी, योगेश पांडे, शत्रुघ्न डबराल, विवेक चैधरी, रंजना प्र्रकाश, विपिन चैधरी, अपूर्वा चैधरी, मर्म चिकित्सा की ट्रेनिंग दे रहे हैं। 5 दिवसीय कार्यशाला का समापन 30 जून को होगा।