नौकरी मिले सरकारी पर कैसे?
( आखरीआंख )
यह कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ सरकारी नौकरियां सिमटती जा रही हैं, दूसरी तरफ युवाओं में इनका क्रेज बढ़ता ही जा रहा है। इसका मुय कारण है निजी क्षेत्र की नौकरियों से मोहभंग। उदारीकरण और नई आर्थिक नीति अपनाने के बाद एक दौर ऐसा आया था जब युवाओं ने प्राइवेट सेक्टर को तरजीह दी। सरकारी नौकरियां छोड़कर उन्होंने कॉरपोरेट हाउसेज जॉइन किए। लेकिन अभी यह ट्रेंड खत्म हो गया है।
सरकारी नौकरियां एक बार फिर पहले की ही तरह यूथ की प्राथमिकता बन गई हैं। सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) का एक सर्वे इस बदलते ट्रेंड पर रोशनी डालता है। सीईएस ने दिल्ली, जयपुर और इलाहाबाद में प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में जुटे 515 विद्यार्थियों के विचार जाने, जिनमें 72 फीसदी ग्रेजुएट और 19 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट थे। उनमें से यादातर ने कहा कि सरकारी नौकरी हासिल करना उनका लक्ष्य है, जबकि प्राइवेट नौकरियों के बारे में उनकी राय नकारात्मक थी।
उनका कहना था कि निजी क्षेत्र की नौकरियां एक तो सुरक्षित नहीं होतीं। उनमें शोषण होता है, फिर यादा घंटे काम के बदले में वेतन भी कम मिलता है। उनमें से कई छात्र पहले प्राइवेट नौकरी कर चुके थे। उनका कहना था कि निजी क्षेत्र से दिल टूट जाने के बाद वे सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयासरत हैं। उनमें से यादातर की यह राय थी कि बेरोजगारी की समस्या तभी सुलझेगी जब सरकार सभी जरूरी पदों पर नियमित नियुक्ति करे। उन्होंने ध्यान दिलाया कि बहुत सारे पद खाली पड़े हैं लेकिन सरकार उन्हें भरने की कोशिश नहीं करती।
पिछले कुछ समय से जिस तरह सरकार के चतुर्थ वर्गीय पदों के लिए एमए, पीएचडी और एमबीए जैसे योग्यता रखने वालों ने आवेदन किए। उससे भी यह साबित होता है कि आज शिक्षित युवा वर्ग सरकारी नौकरी को कितना अहम मानता है। यह सही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने और निजी सेक्टर को बढ़ावा मिलने से नई नौकरियां पैदा हुईं, लेकिन वे उन्हीं युवाओं को मिलीं जो अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ थे। आज भी ये कंपनियां अपने व्यापारिक मकसद से उन्हीं युवाओं को रख रही हैं जो किसी विशिष्ट तकनीकी क्षेत्र में निपुण हैं।
शुरू में इन्होंने आकर्षक वेतन भी दिए लेकिन अर्थव्यवस्था में आए ठहराव ने इन्हें अपने हाथ खींचने पर मजबूर कर दिया। इन्होंने कम लोगों में काम चलाने की नीति अपनाई और ऊंची तनवाह देने में भी कंजूसी करने लगीं। इसके अलावा श्रम मानकों को लेकर कोई सती न होने से इन कंपनियों ने न तो काम के घंटे निश्चत किए न ही प्रोन्नति वगैरह की कोई ठोस नीति बनाई। सरकार के लिए यह एक चेतावनी है। उसे अपनी नौकरियों का दायरा बढ़ाना होगा, साथ ही ऐसी नीति बनानी होगी कि प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों के प्रति युवाओं के आकर्षण में कमी न आए।