मानसून की सुस्ती से सूखे के हालात
( आखरीआंख )
मॉनसून में देरी ने देश में सूखे के संकट को गंभीर बना दिया है। आईआईटी, गांधीनगर द्वारा चलाए जा रहे सूखा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के अनुसार देश के 40 फीसदी से अधिक क्षेत्रों में सूखे का संकट है जबकि ड्राउट अर्ली वार्निंग सिस्टम (ड्यूज) के अनुसार देश के 44 फीसदी हिस्से किसी न किसी रूप में सूखे से प्रभावित हैं। चालू मॉनसून सीजन में मॉनसून का आगमन ही 8 दिन की देरी से हुआ है। साथ ही कई रायों में प्री-मॉनसून की बारिश भी सामान्य से काफी कम हुई है जिसकी वजह से भयावह जल संकट पैदा हो गया है और कृषि पैदावार में भी कमी आने की आशंका गहरा रही है। 20 जून को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 27.265 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) जल संग्रह हुआ। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का मात्र 17 प्रतिशत है। पिछले दिनों चेन्नै के संकट की खबर आई। वहां इसी सप्ताह चार जलाशय सूख गए और अब बहुत कम मात्रा में पानी बचा हुआ है। संकट दूर करने के लिए वहां वेल्लोर के जोलारपेट से एक करोड़ लीटर पानी विशेष ट्रेन के जरिए भेजा जाएगा।
दूसरे महानगरों का भी हाल बहुत अछा नहीं है। बेंगलुरु का भूजल स्तर पिछले दो दशक में 10-12 मीटर से गिर कर 76-91 मीटर तक जा पहुंचा है। दिल्ली का भूजल भी लगातार कम हो रहा है। महाराष्ट्र 47 साल का सबसे बड़ा सूखा झेल रहा है। अन्य कई राय भी इसकी चपेट में आ गए हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले एक वर्ष में जलसंकट की इस समस्या से 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे, वहीं 2030 तक देश की 40 फीसदी आबादी इस गंभीर समस्या की चपेट में होगी। सच तो यह है कि मौसम में आ रहा बदलाव लगातार हमारे ऊपर गहरा असर डाल रहा है। इस बदलाव को अछे से समझकर उसके अनुरूप नीतियां बनानी होंगी। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक 2018 में बारिश में 9.4 फीसदी की कमी आई थी। बारिश में लगातार कमी का यह पांचवां साल था। जाहिर है, बारिश में लगातार कमी आती जा रही है। इसे नोटिस में लेने की जरूरत है। हम यह मानकर नहीं बैठ सकते कि हालात
कभी बदल भी सकते हैं। जिस तरह सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है, उसी तरह मॉनसून के आकलन और उसके मुताबिक रणनीति तैयार करने के लिए एक विशेष तंत्र की जरूरत है। अभी तमाम फौरी राहत उपाय करने चाहिए, लेकिन कई दीर्घकालीन कदम भी उठाने होंगे। जल प्रबंधन के साथ सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने के साथ पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा।
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