May 14, 2024

वायु प्रदूषण की दोहरी कीमत चुकाती जनता

( आखरीआंख )

विश्व के 20 सबसे वायु प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। इनमें कानपुर विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। हमारी इस दुरूह परिस्थिति के पीछे कारण यह है कि वायु प्रदूषण से भारी हानि आम जनता को होती है जबकि वायु प्रदूषण फैलाने से न्यून लाभ चुनिन्दा व्यवसायियों को होता है। अत: व्यवसायी अपने न्यून लाभ के लिए वायु प्रदूषण का विस्तार करते हैं और खमियाजा आम जनता भुगतती है। व्यवसायियों पर नकेल कसने में सरकार फेल है।
यह कैसे मान लिया जाये कि वायु प्रदूषण से आम जनता को भारी हानि होती है जबकि व्यवसायियों को न्यून लाभ होता है? वायु प्रदुषण से जनता को हुई हानि का गणित करने के लिए हमें देखना होगा कि आम आदमी के स्वास्थ्य में हुए लाभ का मूल्य क्या है? जैसे वायु प्रदूषण नियन्त्रण के लिए यदि व्यवसायी को 10 रुपये खर्च करने पड़ते हैं और यदि उस वायु प्रदूषण नियंत्रण से आम आदमी को केवल 5 रुपये का लाभ होता है तो वायु प्रदूषण संभवत: चल सकता है। लेकिन यदि आम आदमी को लाभ 20 रुपये का होता है तो वायु प्रदूषण को रोका ही जाना चाहिए, चूंकि समग्र देश के लिए यह लाभप्रद होगा।
लेकिन आम आदमी को जो प्रदूषण नियंत्रण से लाभ होता है, उसकी गणना कैसे की जाये? अर्थशास्त्रियों ने इस गणित के लिए एक व्यवस्था बनायी है। उन्होंने लोगों से पूछा कि यदि उन्हें एक वर्ष अतिरिक्त जीवित रहने का अवसर मिले तो वह उसके लिए कितना मूल्य अदा करना स्वीकार करेंगे। इस प्रकार का सर्वे हजारों लोगों से किया गया। उसके बाद देखा गया कि वायु प्रदूषण से आम आदमी के जीवन में कितने वर्ष की गिरावट आती है। जैसे शुद्ध वायु में आम आदमी का जीवन 65 वर्ष हो और प्रदूषित वायु में उसका जीवन 57 वर्ष हो तो हम कह सकते हैं कि उसके जीवन काल में 8 वर्ष की गिरावट वायु प्रदूषण के कारण आई है। अथवा उसके जीवन काल में 8 वर्ष की वृद्धि वायु प्रदूषण के नियंत्रण से होगी। इस आधार पर अर्थशास्त्रियों ने वायु प्रदूषण के नियंत्रण से होने वाले लाभ का गणित इस प्रकार किया है। मान लीजिये वायु प्रदूषण नियंत्रण से आम अदमी के जीवन में ‘ङ्गÓ वर्ष की वृद्धि होती है। इसके बाद मान लीजिये कि जीवन काल में एक वर्ष की वृद्धि का आम आदमी ‘ङ्घ मूल्य मानता है। मान लीजिये अपनी जनसंया र्’ंÓ है। तब देश को वायु प्रदूषण नियंत्रण से लाभ ‘ङ्गÓ गुणे ‘ङ्घÓ गुणे र्’ंÓ होगा। ऐसा करके अर्थशास्त्रियों ने हिसाब लगाया कि वायु प्रदूषण के नियंत्रण से देश को कितना लाभ होगा।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण का सीधा बोझ व्यवसायियों पर पड़ता है। उन्हें प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाने पड़ते हैं अथवा महंगे साफ ईंधन का उपयोग करना पड़ता है। अब हम वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लाभ और हानि का आकलन कर सकते हैं। बिल एवं मिलींडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा दादरी बिजली संयंत्र का अध्ययन किया गया। पाया गया कि प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाने में जो खर्च आएगा, उसकी तुलना में वायु प्रदूषण नियंत्रण का लाभ 6 गुणा होगा। इसी प्रकार शंघाई में एक बिजली संयंत्र के अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण पर खर्च की तुलना में आम आदमी को लाभ 5 से 6 गुणा होगा। विकसित देशों की संस्था ओईसीडी द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण नियंत्रण की समग्र नीति को लागू करने के खर्च की तुलना में लाभ 20 गुणा होगा। इन तथा अन्य तमाम अध्ययनों से यह बात स्पष्ट निकलती है कि वायु प्रदूषण नियंत्रण के खर्च की तुलना में उसका लाभ बहुत अधिक है।
समस्या यह है कि वायु प्रदूषण नियंत्रण का खर्च व्यवसायी को वहन करना पड़ता है जबकि उसका लाभ आम आदमी को मिलता है। व्यवसायियों के स्वार्थ को हासिल करने के लिए सरकारें उन्हें वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने को बाध्य नहीं करती हैं। लेकिन वास्तव में व्यवसायी द्वारा वहां किया गया खर्च भी अंतत: आम आदमी पर ही पड़ता है। यदि व्यवसायी वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाता है और उसके कारण उसकी उत्पादन लागत बढ़ती है तो वह बोझ भी अंतत: आम आदमी पर ही पड़ता है। जैसे यदि ईंट के भट्टे पर वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपकरण लगाये गये तो ईंट का दाम 8 रुपये से बढ़कर 10 रुपये हो जायेगा। आम आदमी को वह ईंट 8 रुपये के स्थान पर 10 रुपये की खरीदनी पड़ेगी। इस प्रकार वायु प्रदूषण के लाभ और हानि दोनों ही आम आदमी पर पड़ते हैं। वायु प्रदूषण का लाभ आम आदमी को जीवन काल में वृद्धि के रूप में सीधे मिलता है जबकि वायु प्रदूषण नियंत्रण की हानि आम आदमी पर ही महंगे माल के रूप में आकर पड़ती है। अत: जनता को यह तय करना है कि वह महंगी ईंट खरीदेगी अथवा लबा जीवन चाहेगी। यदि लबा जीवन चाहिए तो महंगी ईंट खरीदनी ही पड़ेगी।
आम आदमी को यदि यह प्रश्न सीधे पूछा जाये कि आप सस्ती ईंट खरीद कर अल्प जीवन जीना चाहेंगे या महंगी ईंट खरीदकर लबा जीवन चाहेंगे तो अनुमान है कि हर व्यक्ति यही कहेगा कि हम महंगी ईंट खरीद कर लबा जीवन चाहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि जनता ईंट भट्टे व्यवसायी को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। जनता के पास कोई अधिकार नहीं है कि वह व्यवसायी को कहे कि तुम हमसे ईंट का 2 रुपया अधिक ले लो लेकिन वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रदूषण उपकरण लगाओ। अंतत: यह कार्य सरकार को ही करना पड़ेगा।
सरकार जनता के हित की रक्षक होती है। सरकार की जिमेदारी है कि जनता के हित में जो कार्य हो, उसके अनुसार कानून बनाये और उसे लागू करे। लेकिन सरकार के सामने प्रश्न यह रहता है कि प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने का सीधा बोझ व्यवसायी के ऊपर पड़ता है। इसलिए व्यवसायी का दबाव होता है कि सरकार उसे उपकरण लगाने पर मजबूर न करे; और दूसरी तरफ जनता का दबाव होता है कि सरकार नियन्त्रण उपकरण लगवाये। सरकार इन दोनों दबावों के बीच में अपना रास्ता बनाती है। जब जनता का दबाव अधिक होता है तो सरकार कानून बनाकर वायु प्रदूषण नियंत्रण यन्त्र लगाने को व्यवसायियों को मजबूर करती है।
अत: अपने देश में वायु प्रदूषण की बुरी हालत इस बात को दर्शाती है कि सरकार पर व्यवसायियों का दबाव यादा है और उनके दबाव में सरकार वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने पर दबाव नहीं डाल रही है और जनता के जीवन काल को छोटा कर रही है।