क्यों बाघ अब हिमालय की ऊंचाई वाले इलाकों में दे रहे दस्तक
( आखरीआंख )
मैदानी इलाके के जंगलों में प्राकृतिक आवास, विचरण के लिए क्षेत्र और आहार की हो रही किल्लत की वजह से इनकी तलाश में बाघ अब हिमालय की ऊंचाई वाले इलाकों में पहुंचने लगे हैं। केदारनाथ अभयारण्य में बुधवार को एक बार फिर से बाघ देखा गया है। जबकि अस्कोट अभयारण्य में भी बाघ कैमरा में कैद हो चुका है। इसको लेकर वन महकमा अब मंथन में लगा हुआ है।
उत्तराखंड में बाघ अमूमन एक हजार फीट से निचले इलाकों में पाए जाते हैं। लेकिन हिमालय से लगे केदारनाथ और अस्कोट अभयारण्य में बाघों के दिखाई देने से यह बहस शुरू हो गई है कि बाघ उच हिमालय क्षेत्र में पहले से हैं या मैदान से शिट होकर वहां पहुंच रहे हैं।
वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. वाईपी झाला का कहना है कि भोजन और आवास की तलाश में बाघ मैदान से ऊंचे पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं। तराई में लगातार संया बढऩे से इनको मैदान में विचरण और शिकार के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल रही। केदारनाथ के आसपास के जंगलों में काफी सांभर हैं। ऐसे में वहां बाघों को भोजन की कोई कमी नहीं होगी। उत्तराखंड में 370 के करीब बाघ हैं। इसमें से कॉर्बेट नेशनल पार्क में ही बाघों की संया 215 है। एक बाघ को रहने के लिए 20 किलोमीटर तक का क्षेत्रफल चाहिए। लेकिन पार्क और इससे सटे जंगलों में एक बाघ को पांच किलोमीटर का इलाका भी नहीं मिल पा रहा है। जगह की कमी से बाघों में आपसी संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। इसलिए बाघ पलायन कर रहे हैं। बाघों पर लंबे समय से अध्ययन कर रहे एजी अंसारी कहते हैं, वर्षों पहले हिमालयी इलाकों से होकर ही बाघ तराई के जंगलों में आए थे। लेकिन बीते कुछ दशकों में तराई के जंगलों के आसपास आबादी तेजी से बढ़ी है। बाघों के लिए जगह के साथ-साथ भोजन भी कम पड़ रहा है। यही वजह है कि बाघ अपने लिए नया घर तलाश रहे हैं।