November 22, 2024

और अब सच की सज़ा !!!

आखरीआंख
उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के एक ग्रामीण स्कूल में मिड डे मील में नमक-रोटी परोसे जाने का खुलासा करने वाले पत्रकार के खिलाफ आपराधिक धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराने पर तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है। ‘जो बोले, डंडा झेलेÓ की तर्ज पर उस ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि को भी गिरतार कर लिया गया है, जिसने जमालपुर विकास खंड के प्राथमिक विद्यालय सिऊर में मिड डे मील में धांधली की सूचना पत्रकार को दी थी। पहले तो स्थानीय प्रशासन मामले को सामान्य घटना की तरह ले रहा था मगर जब सोशल मीडिया में बचों द्वारा नमक से रोटी खाये जाने का वीडियो वायरल हुआ तो शासन-प्रशासन के कान खड़े हुए। आनन -फानन में प्रधानाध्यापिका के निलंबन, शिक्षा मित्र का मानदेय रोकने, खंड शिक्षा अधिकारी के निलंबन, बेसिक शिक्षा अधिकारी के तबादले के बाद वीडियो बनाने वाले पत्रकार के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने और सरकारी काम में बाधा डालने जैसे आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की गई। गाहे-बगाहे विवादों में रहने वाली मिड डे मील योजना को लेकर शासन-प्रशासन की छवि खराब करने का आरोप पत्रकार पर मढ़ा गया है। जबकि पत्रकार की दलील है कि वह क्षेत्र के शिक्षा अधिकारी को सूचित करके सिऊर स्कूल गये थे। अभिभावकों द्वारा आये दिन चावल-नमक, रोटी-नमक और अन्य अनियमितताओं की शिकायत मिलने पर उन्होंने वीडियो बनाया। खबर करना उनका दायित्व है, उसकी मंशा पर सवाल उठाना अनुचित है। दरअसल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के ट्वीट के बाद राय सरकार हरकत में आई और फिर आनन-फानन में कार्रवाई होने लगी। विगत में भी मीडियाकर्मियों के खिलाफ आक्रामक रवैया दिखाने वाली सरकार को आखिर यह अधिकार किसने दिया कि सच सामने लाने वाले पत्रकार को प्रताडि़त करने के प्रयास हों। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राय सरकार को इस बाबत नोटिस दिया है।
इस मामले को उजागर करने वाले स्थानीय पत्रकार पर शिकंजा कसे जाने के खिलाफ मीडिया जगत में देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई है। कहा जा रहा है कि अधिकारी अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिये पत्रकार को मोहरा बना रहे हैं। लोकतंत्र में मीडिया के प्रति ऐसी असहिष्णुता निश्चय ही हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। जो राय की योगी सरकार पर भी सवाल उठाता है, जिसके शासनकाल में पहले भी कुछ पत्रकारों को पुलिस की मनमानी कार्रवाई का शिकार होना पड़ा था। वहीं दूसरी ओर प्रशासन द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि मिड डे मील की व्यवस्था करना ग्राम प्रधान का दायित्व है। जब उनके प्रतिनिधि को सब्जी न होने की जानकारी मिली थी तो उन्हें पत्रकार को बुलाने के बजाय प्रधान को जानकारी देनी थी और रसोइये को सब्जी उपलब्ध करानी चाहिए थी। नि:संदेह महत्वाकांक्षी मध्याह्न भोजन योजना अपनी उपलब्धियों से कम बल्कि विसंगतियों व भ्रष्टाचार की वजह से यादा चर्चित रही है। कभी खाने की गुणवत्ता, कभी खाना बनाने में लापरवाही तथा कभी मिड डे मील के धन की बंदरबांट को लेकर। कभी खाना बनाने वाले तथा कभी छात्रों के साथ सामाजिक भेदभाव की खबरें भी हमारे समाज के काले सच को बयां करती रही हैं। दरअसल, मिड डे मील योजना केंद्र व राय सरकारों के सहयोग से 15 अगस्त, 1995 को लागू की गई। पहले इस योजना के अंतर्गत अभिभावकों को अनाज उपलब्ध कराया जाता था मगर फिर सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर वर्ष 2004 से विद्यालयों में तैयार खाना उपलब्ध कराना शुरू किया गया। उ.प्र. में 1,68,786 विद्यालयों में मिड डे मील देने की व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत राय के एक करोड़ अस्सी लाख बचों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है। मगर, ग्राम प्रधान, प्रधानाध्यापक व रसोइए की तिकड़ी इसके क्रियान्वयन में चूकती नजर आती है। शहरों में निगरानी तंत्र की सक्रियता से स्थिति ठीक है, मगर ग्रामीण इलाकों में व्यवस्था भगवान भरोसे ही है। निर्धारित मेन्यू के लिये पर्याप्त धन उपलब्ध न होने की भी अक्सर शिकायत की जाती है।