April 20, 2024

दिल्ली अग्निकांड ने खोली हमारे सिस्टम की पोल

आखरीआंख

दिल्ली में रविवार को तड़के अनाज मंडी इलाके की एक फैक्ट्री में लगी आग में 43 लोगों की मौत ने एक बार फिर हमारे सिस्टम की पोल खोल दी है। आग लगने की कई घटनाएं राजधानी में पहले भी घट चुकी हैं। 17 लोगों की जान लेने वाली एक होटल में लगी आग इसी साल फरवरी की घटना है। उपहार सिनेमा जैसी त्रासदी आज भी पूरे देश को याद है लेकिन लगता नहीं कि राजधानी प्रशासन ऐसी घटनाओं से कोई सबक लेता है।

हर हादसे के बाद तमाम गड़बडिय़ां ठीक करने के संकल्प दोहराए जाते हैं। जांच चलती है। कुछ दोषी पकड़े जाते हैं लेकिन फिर सब कुछ भुला दिया जाता है। आज भी दिल्ली के कई रिहायशी इलाकों में फैक्ट्रियां लगाई जा रही हैं और जरूरी सुरक्षा इंतजामों को ताक पर रखा जा रहा है। अनाज मंडी के मामले में हालात ऐसे ही थे। बताया जा रहा है कि इन कारखानों को खाली करने के लिए एक महीने पहले नोटिस भेजा गया था लेकिन नोटिस की अनदेखी की गई।

फैक्ट्री चलाने वालों के पास ना तो फायर की एनओसी थी, ना ही उन्होंने यहां फायर सेटी का कोई इंतजाम किया हुआ था। हद तो यह कि सात महीने पहले ही इस इमारत में आग लगी थी फिर भी कोई इंतजाम नहीं किया गया। नियमों के हिसाब से घरेलू इंडस्ट्री में यादा से यादा 9 लोगों को रखा जा सकता है और बिजली का लोड 11 किलोवॉट से यादा नहीं हो सकता लेकिन यहां सैकड़ों कर्मचारी काम कर रहे थे। इमारत में वेंटिलेंशन का भी पर्याप्त इंतजाम नहीं था।

सचाई यह है कि राजधानी में ऐसी हजारों इमारतों में गुपचुप कारखाने चलाए जा रहे हैं, जहां मामूली चूक से बड़ा हादसा हो सकता है। भयानक घटनाओं के बाद भ्रष्टाचार का एक व्यवस्थित तंत्र सामने आता है, जो थोड़ा-बहुत हिल-डुलकर दोबारा अपनी जगह पर वापस लौट आता है। सवाल है कि लोगों की जान के साथ खिलवाड़ का यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? देश के अन्य महानगरों का हाल भी कोई बहुत अछा नहीं है।

मुंबई में हाल ही में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं। फिर भी मुंबई और दिल्ली में एक बड़ा फर्क है कि मुंबई में कमर्शल इलाके जाने-पहचाने हैं। इसके विपरीत दिल्ली में पता ही नहीं चलता कि किस रिहायशी कॉलोनी में कितनी कारोबारी गतिविधियां चल रही हैं। नतीजा यह कि कोई हादसा होने पर तमाम एजेंसियां एक-दूसरे पर उंगली उठाने लगती हैं, जबकि उसके लिए वे सब बराबर की जिमेदार होती हैं।

ये हादसे हमारे एक अविकसित देश होने और अर्थव्यवस्था में असंय चोर दरवाजे होने की गवाही भी देते हैं। वक्त आ गया है रिहायशी इलाकों में कमर्शल गतिविधियों को लेकर अब और हीलाहवाली न की जाए और घनी आबादी में चलने वाले कारखानों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जाए। नियमों को धता बताने वालों में कानून का खौफ पैदा किए बिना बात एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगी।