September 8, 2024

वित्त मंत्री का नजरिया


इसके पीछे सोच यह है कि सरकार जो कहानी बताती है, उसे जो भी उसी रूप में स्वीकार नहीं करता और उस पर बहस करना चाहता है, उसकी साख को संदिग्ध कर दिया जाए।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बयान पर उचित ही देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। आर्थिक मसलों पर संसद में सवाल पूछने पर उन्होंने विपक्ष की तुलना देश से बाहर बैठे दुश्मनों से की और कहा कि देश की आर्थिक तरक्की से उन्हें जलन होती है। यह सीधे तौर पर सवाल पूछने और कमियों की तरफ इशारा करने की जरूरी प्रवृत्ति को अपने समर्थक जमातों के बीच देश-द्रोही ठहरा देने का नजरिया है। इसके पीछे सोच यह है कि सरकार जो कहानी बताती है, उसे जो भी उसी रूप में स्वीकार नहीं करता और उस पर बहस करना चाहता है, उसकी साख को संदिग्ध कर दिया जाए। मुमकिन है कि इस आक्रामकता के पीछे असल कारण जवाब का अभाव हो। आखिर देश की अर्थव्यवस्था के कई ऐसे पहलू हैं, जिन पर अगर सरकार खुल कर चर्चा करने को तैयार हो, उसे खुद ‘तरक्की’ की बनाई गई अपनी कहानी में कई छेद नजर आएंगे। बहरहाल, अगर वह छेद देखने को तैयार हो, तो उससे समाधान का रास्ता भी नजर आ सकता है। लेकिन वर्तमान सरकार कोई समस्या नहीं देखना चाहती। जाहिर है, वह इन मुद्दों की चर्चा सिरे से ठुकरा देना चाहती है, ताकि भूले से भी उसकी समर्थक जमातों का ध्यान उनकी तरफ ना जाने लगे।
इस कोशिश में जनता से चुन कर आए विपक्षी प्रतिनिधियों की देशभक्ति पर भी अगर अंगुली उठानी हो, तो उसे इसमें कोई हिचक नहीं होती। लेकिन इस नजरिए के कारण देश अलग-अलग नैरेटिव्स में बंटता चला गया है। देश के दूरगामी भविष्य के नजरिए यह चिंताजनक बात है। राष्ट्र की मजबूती सहमति और साझा हित के अधिकतम पहलुओं की तलाश से होती है। देशभक्त शक्तियों का कर्त्तव्य ऐसे पहलुओं को ढूंढना और उन्हें स्वीकार्य बनाना होता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान सरकार आर्थिक मुद्दों पर विपक्षी विश्लेषण को नहीं  सुनना चाहती। अगर सचमुच वह एक खास धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान आधारित राष्ट्र निर्माण में जुटी होती, तो उसे इन मुद्दों की अवश्य चिंता होती। इसलिए कोई राष्ट्रवाद संबंधित पहचान से जुड़े लोगों की खुशहाली सुनिश्चित नहीं करता, तो वह टिकाऊ नहीं हो सकता। वह महज कुछ समूहों और वर्गों की सत्ता और वर्चस्व को, जब तक संभव हो, टिकाए रहने का जरिया ही हो सकता है।