लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे नौ हजार पेयजल कर्मचारी, पेंशनर्स
देहरादून । पेयजल को राजकीय विभाग न बनाए जाने पर जल निगम जल संस्थान संयुक्त मोर्चा ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का ऐलान किया। मोर्चा ने चेतावनी दी कि यदि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता से पहले पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने की दिशा में ठोस फैसला न हुआ, तो चुनाव का बहिष्कार तय है। मोर्चा से जुड़े नौ हजार कर्मचारी, पेंशनर्स अपने परिजनों सहित चुनाव का बहिष्कार करेंगे।
जल भवन नेहरू कालोनी में दिए गए धरने में कर्मचारियों ने शासन के साथ ही मैनेजमेंट के लापरवाह रवैये के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी कर विरोध जताया। संयोजक विजय खाली और रमेश बिंजौला ने कहा कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने का आश्वासन दिया गया था। इसके बाद भी शासन ने कोई पहल नहीं की। कहा कि ऐसे ही अफसर सरकार की छवि खराब कर रहे हैं। सरकार की छवि को कर्मचारी विरोध करार करने पर तुले हैं। जबकि सीएम कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील हैं। उन्होंने सीएम से अफसरों को चिन्हित करते हुए सख्त फैसला लेने की मांग की।
श्याम सिंह नेगी, आनंद सिंह राजपूत ने कहा कि आचार संहिता से पहले होने वाली कैबिनेट बैठक में राजकीयकरण पर फैसला लिया जाए। यदि राजकीयकरण की प्रक्रिया में समय लग रहा है, तो कैबिनेट स्तर से पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने पर ही सैद्धांतिक सहमति दी जाए। ऐसा न होने पर कर्मचारियों, पेंशनर्स को मजबूरन भारी मन से लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का फैसला लेना होगा। विरोध जताने वालों में संदीप मल्होत्रा, रामचंद्र सेमवाल, जीवानंद भट्ट, उजमा खालिद, महेश्वरी नेगी, आभा सिंह, रचना नेगी, रमेश सिंह, नरेंद्र पाल, याद राम सिंह, सीताराम, चिरंजी लाल, श्रीपाल सिंह, मनवर सिंह, अमित गुसाईं, सागर सिंध्वाल, अंशु ठाकुर, देवेंद्र राणा, पूजा, नंद कुमार तिवारी आदि मौजूद रहे।
राजकीयकरण से रुकेगा विभागीय भ्रष्टाचार
मोर्चा पदाधिकारियों ने कहा कि पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने से विभागीय भ्रष्टाचार रुकेगा। सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व प्राप्त होगा। सरकार का पेयजल एजेंसियों के भीतर दखल बढ़ेगा। कहा कि अभी हर साल पेयजल के रखरखाव के नाम पर 200 करोड़ से अधिक के बजट की बंदरबांट की जाती है। मरम्मत रखरखाव से लेकर सेंटर स्टोर की खरीद में बड़ी अनियमितताएं हो रही हैं। जब एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों में जल जीवन मिशन और शहरों में वर्ल्ड बैंक, अमृत, जायका योजना में काम हो रहे हैं, तो सेंटर स्टोर में क्यों हर साल अरबों की खरीद हो रही है। ये सामान कहां खपाया जाएगा। इसका कोई जवाब अफसरों के पास नहीं है। कैमिकल से लेकर लैब के सामान की खरीद में भी बजट बर्बाद हो रहा है।
निशाने पर जल संस्थान के अफसर
पेयजल के राजकीयकरण की मुहिम से जुड़े कर्मचारी नेताओं के निशाने पर जल संस्थान के अफसर आ गए हैं। पदाधिकारियों का कहना है कि जल संस्थान के अफसर ही पेयजल के राजकीयकरण की मुहिम को लगातार कमजोर कर रहे हैं। इन्हीं अफसरों को वेतन, पेंशन का पैसा सीधे ट्रेजरी से दिए जाने में परेशानी है। यही अफसर नहीं चाह रहे कि शहरी विकास की एजेंसी से काम पेयजल एजेंसियों को वापस मिले। ऐसे अफसरों के खिलाफ आने वाले समय में आंदोलन तेज किए जाने की चेतावनी दी गई।