September 8, 2024

उत्तराखंड के सीमांत 40से अधिक गांव आज भी सड़क सुविधा के लिए जूझ रहे


पिथौरागढ । देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव को लेकर  उत्साह का माहौल है। जगह-जगह जनसभाएं हो रही हैं, जनप्रतिनिधि पैदल यात्रा कर लोगों को भविष्य के सपने दिखा रहे हैं। इन सब के बीच सीमांत के 40 से अधिक गांवों में रहने वाले हजारों लोग सड़क सुविधा के लिए जूझ रहे हैं।  सड़क न होने से कोई 15 किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर राशन घर तक पहुंचा रहा है तो कोई डोली से बीमार रोगियों को अस्पताल पहुंचाने को मजबूर हैं। इस दौरान लोगों ने कहा कि आजादी के बाद देश में 16 सरकारें अस्तित्व में आ चुकी हैं, लेकिन उनका सड़क का सपना पूरा नहीं हो सका है। कहा कि उन्होंने कई चुनाव देख लिए हैं, राजनीतिक दल और प्रत्याशी चुनाव से पूर्व ढेर सारे वायदे करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनकी तरफ मुड़कर नहीं देखते।
हीपा:     बेरीनाग के हीपा के ग्रामीण सड़क की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। प्रधान चामू सिंह का कहना है कि प्रेमनगर से हीपा गांव तक सड़क बनाने के लिए सर्वे 2014 में हुआ था। ग्रामीण छह किमी पैदल गांव तक पहुंचते हैं। स्कूली बच्चे 12 किमी आते-जाते हैं।
तड़ीगांव:     मूनाकोट ब्लॉक का तड़ीगांव ग्राम पंचायत में रहने वाले लोग सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली से परेशान हैं। स्थानीय आशा देवी, भूपेंद्र चंद ने कहा कि उनके गांव तक सड़क नहीं पहुंचीहै। हम पांच से छह किमी पैदल पीठ में राशन ढोकर ला रहे हैं।
गांधीनगर:    आजादी की लड़ाई में देश को तीन-तीन स्वतंत्रता सेनानी देने वाले गांधीनगर गांव में सड़क नहीं है। ग्राम प्रधान राजेश रोशन बताते हैं कि सड़क को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन गांव में अब तक सड़क नहीं पहुंच सकी है।
कहा कि सड़क न होने से ग्रामीणों को सात किमी पैदल आवाजाही करनी पड़ती है। रोगियों को कंधे में ढोकर वह मुख्य सड़क तक पहुंचाते हैं, तब कहीं उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं।
कनार:   बंगापानी के दूरस्थ कनार गांव में दो मुख्यमंत्रियों की घोषणा भी सड़क से नहीं जोड़ सकी है। बीडीसी सदस्य गुड्डू परिहार बताते हैं कि ग्रामीण 15किमी पैदल आवाजाही करते हैं, तब कहीं गांव से मुख्य सड़क तक पहुंच पाते हैं।