June 17, 2024

भारत के युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की दर आखिर क्‍यों?



भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, किंतु एक चिंताजनक पहलू जो इस विकास यात्रा में बाधा बनकर उभर रहा है, वह है युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की दर। यह ज्वलंत मुद्दा न केवल सामाजिक चिंता का विषय बन गया है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। दरअसल भारत अब दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्या दर वाला देश बन गया है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के आंकड़े भारत में आत्महत्या की गंभीर स्थिति को उजागर करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भारत में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो दुनिया के अन्य देशों में सबसे अधिक है। यह प्रति एक लाख जनसंख्या पर 12.4 प्रतिशत की आत्महत्या दर के बराबर है, जो अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है। यह आंकड़ा चिंताजनक है, खासकर जब हम यह भी जानते हैं कि भारत में आत्महत्या के मामलों की वास्तविक संख्या अंदाजों से कहीं अधिक हो सकती है। अपर्याप्त पंजीकरण प्रणाली, मृत्यु के चिकित्सा प्रमाणन की कमी और आत्महत्या से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण कई मामलों का पता तक नहीं चल पाता है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 41 प्रतिशत आत्महत्याएं 30 वर्ष से कम आयु के युवाओं द्वारा की जाती हैं। भारत में युवा महिलाओं के लिए मृत्यु का प्रमुख कारण भी आत्महत्या ही बन गया है।
युवाओं में आत्महत्या के पीछे अनेक जटिल कारण सम्मिलित हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, शैक्षणिक दबाव, सामाजिक आर्थिक समस्याएं, प्रेम संबंधों में असफलता, व्यसन और घरेलू हिंसा आदि इसके कुछ प्रमुख कारण हैं। भारत में युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ काफी ज्यादा है, लेकिन उनमें से ज्यादातर इसका उपचार नहीं कराते। परीक्षाओं में सफलता का अत्यधिक दबाव, अभिभावकों और शिक्षकों की अपेक्षाएं और असफलता का डर युवाओं को आत्महत्या की ओर धकेल सकता है। गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव और परिवार में तनाव भी आत्महत्या के लिए जोखिम कारक बन सकते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण प्रेम संबंध, ब्रेकअप और अकेलापन भी युवाओं को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसी प्रकार शराब और मादक द्रव्यों का सेवन भी आत्महत्या के जोखिम कारकों में शामिल है। युवाओं के बीच इंटरनेट के उपयोग में होने वाली उल्लेखनीय वृद्धि भी आत्महत्या में प्रमुख

भूमिका अदा करती है। इसके कुछ अन्य कारकों में साइबर बुलिंग, लैंगिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, और सामाजिक मूल्यों में गिरावट भी शामिल हो सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आत्महत्या का एक बड़ा कारण हैं। भारत में लगभग 54 प्रतिशत आत्महत्याएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण होती हैं। नकारात्मक एवं दर्दनाक पारिवारिक मुद्दे भी आत्महत्या के एक बड़े कारण के रूप में देखे गए हैं और भारत में इनके कारण होने वाली आत्महत्याओं के मामले लगभग 36 प्रतिशत हैं। पढ़ाई के दबाव से यानी शैक्षणिक तनाव से होने वाली आत्महत्याओं के मामले लगभग 23 प्रतिशत पाए गए हैं। इसी प्रकार भारत में होने वाली आत्महत्याओं में सामाजिक एवं जीवनशैली कारकों का लगभग 20 प्रतिशत और हिंसा का 22 प्रतिशत योगदान रहता है। इसके अलावा आर्थिक संकट के कारण 9.1 प्रतिशत और संबंधों की वजह से लगभग 9 प्रतिशत आत्महत्या से बचाने के लिएए उनकी मानसिक परेशानियों की शीघ्र पहचान करनी चाहिए और अनुकूल वातावरण में उनकी देखभाल के समुचित प्रावधान होने चाहिए। आत्महत्या की प्रवृत्ति रोकने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिएए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाना और उन्हें सस्ती दर पर उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाकर परीक्षाओं में सफलता के दबाव को कम करना होगा और विद्यार्थियों में आत्मविश्वास बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। साथ ही गरीब और जरूरतमंद युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करना भी जरूरी है। युवाओं को प्रेम संबंधों में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए परामर्श और सहायता प्रदान करना चाहिए।