September 20, 2024

अब बिना एजेंडे के समय काटने की है


यों कहने को अभी नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में कहा है कि वे भारत में कई सिंगापुर बनाएंगे। लेकिन यह जुमला है एजेंडा नहीं। वैसे ही जैसे दस वर्ष पहले मोदी ने स्मार्ट सिटी का जुमला दिया था। जरा भारत के बाढग़्रस्त महानगरों, शहरों पर गौर करें, खरबों रुपए की स्मार्ट सिटी की ठेकेदारी के बावजूद कथित स्मार्ट सिटियां पानी में डूबी दिखेंगी। इसलिए मोदी राज के एजेंडे में विचारना यह है कि अबकी बार 400 पार, हिंदू राष्ट्र की घोषणा, गौहत्यामुक्त भारत या बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने, पीओके आजाद कराने, सीमा पार से आंतकियों को रोकने, भारतीय क्षेत्र से चीनी सेना को खदेडऩे, सयुंक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता जैसी प्राथमिकताओं में सरकार का एजेंडा बना दिखना चाहिए। क्या ऐसा कोई भी एक संकल्प मोदी, शाह का है?
आप ही सोचें, इन दिनों नरेंद्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ किस एजेंडे में लगे दिख रहे हैं? एक ही जवाब है राहुल गांधी, चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, इंडिया एलायंस के एजेंडे को सुनना और उस पर रिएक्ट होना। इस सप्ताह आरएसएस की बैठक थी। उसके बाद वहीं बातें हुए जो तात्कालिक राजनीति की चुनौती है। जैसे जाति जनगणना। वही सरकार इस सप्ताह नई बोतल में पुरानी पेंशन ले आई है। मतलब तेजस्वी, नीतीश की जात राजनीति के एजेंडे पर आरएसएस की मोहर तो कांग्रेस के सरकारी कर्मचारियों की पेंशन के चुनावी वादे पर मोदी कैबिनेट का अमल करना।
मोदी सरकार 3.0 के अभी सौ दिन नहीं हुए हैं। लेकिन जितने दिन गुजरे हैं, उनमें संसद में राष्ट्रपति के भाषण, बजट भाषण, पंद्रह अगस्त पर लाल किले के भाषण और तमाम सरकारी फैसलों को याद करें, सभी में विपक्षी एजेंडे पर प्रतिक्रिया मिलेगी। प्रधानमंत्री के भाषण पर भाजपा, संघ बम बम हो कर आक्रामक नहीं होते हैं, बल्कि राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के नेताओं अखिलेश, उद्धव ठाकरे के कहे पर भाजपा रक्षात्मक या प्रतिक्रिया देते हुए है। महाराष्ट्र में विपक्ष ने शिवाजी की मूर्ति के गिरने की घटना को मुद्दा बनाया तो नरेंद्र मोदी ने माफी मांगी लेकिन एकनाथ शिंदे के चेहरे के कारण विपक्ष जस का तस आक्रामक है जबकि मोदी, शाह न शिंदे को हटा सकते हैं और न अजित पवार पर फैसला ले सकते हैं।

तभी राजनीतिक नैरेटिव भी विपक्ष केंद्रित है। जम्मू कश्मीर के उम्मीदवारों की लिस्ट हो या हरियाणा के उम्मीदवारों की सूची, दोनों से भाजपा की बदनामी हुई और पार्टी के पास जवाब में कुछ नहीं था। एक वक्त था जब कांग्रेस या विरोधी क्षत्रप के यहां भगदड़ होती थी लेकिन अब उलटा है। भाजपा को नेता छोड़ रहे हैं। भाजपा की परिवारवाद के कारण बदनामी है तो चम्पई सोरेन जैसी तोडफ़ोड़ टांय टांय फिस्स हैं। ममता बनर्जी के हवाले हाल में बंगाल पर फोकस बनाए रखने के बावजूद ऐसी कोई वाह नहीं बनी, जिससे आगामी चुनावी दंगल में भाजपा का कोई ग्राफ बने।
दरअसल मोदी, अमित शाह को अब कोई वैचारिक, राजनीतिक, आर्थिक, हिंदुवादी एजेंडा बूझ नहीं रहा है क्योंकि हर मामले में विश्वसनीय पैंदे पर पहुंची हुई है। उस नाते अब असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा और योगी आदित्यनाथ जरूर हल्ला बना रहे हैं लेकिन हिमंता नमाज के समय में कटौती जैसी बातों का हल्ला बनाते हैं तो उधर नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा के दौरान मस्जिद में घूमते दिखलाई देते हैं।
जाहिर है नरेंद्र मोदी का नंबर एक संकट है कि करें तो क्या करें? उनके पास ले दे कर विदेश में फोटोशूट करा कर भक्तों में अपने को विश्व गुरू बनाए रखने का अकेला विकल्प है। भगवान होने या कि अजैविक देवदूत होने की मार्केटिंग अब संभव नहीं है। पहले नरेंद्र मोदी का चेहरा ही एजेंडा था। अब वह स्थिति नहीं है। तभी उनका हर भाषण पीट रहा है। बोरियत पैदा कर रहा है। आया-गया हो जा रहा है। तब कैसे तो राम मंदिर जैसा एजेंडा बने और कैसे घर में घुस कर मारने या भ्रष्टाचार की बातों से विपक्ष को ईडी-सीबीआई से जेल में डालने की कसमें खाते रहें।
हां, प्रधानमंत्री पद के नाते अधिकारिक कामों, विदेश यात्राओं के फोटो आदि सब ठीक हैं लेकिन इनसे एजेंडा नहीं बनता। ऐसा कोई विजन संभव नहीं है कि आसियान देशों के साथ फ्री ट्रेड पर भारत काम कर रहा है। सार्क कामयाब नहीं है तो आसियान या उसके भीतर भारत नया व्यापारिक, सामरिक गठजोड़ बनाए। इसलिए भारत की नियति अब बिना एजेंडे के समय काटने की है और मोदी सरकार को समय काटते रहना है।