हरियाणा: राजनीतिक हाशिये पर बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के परिवार
राजनीति भी अजब खेल है। दशकों तक हरियाणा में राजनीति के केंद्र रहे तीन लाल- बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल- के परिवार इस विधानसभा चुनाव में हाशिये पर हैं। तीनों लालों ने अपनी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से ही की थी, लेकिन तीनों ने ही कांग्रेस छोड़ी भी। तथ्य यह भी है कि पिछले दस साल से हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा देवीलाल और बंसीलाल के दल के साथ गठबंधन कर राजनीति करती रही, लेकिन पिछले एक दशक में तीनों लाल परिवार उसका कमल थामे नजर आये।
चौधरी बंसीलाल इंदिरा गांधी के समय बड़े नेताओं में शुमार थे
चौधरी बंसीलाल इंदिरा गांधी के समय बड़े नेताओं में गिने जाते थे। इंदिरा के चर्चित बेटे संजय गांधी के भी वे करीबी रहे। वे केंद्र में मंत्री रहने के अलावा तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। उन्हें ‘आधुनिक हरियाणा का निर्माता’ कहा जाता है। तीसरी बार वे हरियाणा विकास पार्टी बना कर भाजपा से गठबंधन में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा द्वारा समर्थन वापसी के चलते बंसीलाल सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी। साल 2004 में बंसीलाल और उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में 2005 में कांग्रेस के सत्ता में आने पर सुरेंद्र सिंह मंत्री भी बनाये गये। एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी ने परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली, जो उससे पहले दिल्ली में कांग्रेस की बड़ी नेता थीं।
देवीलाल सबसे ज्यादा पांच बार मुख्यमंत्री रहे
हरियाणा में गैर-कांग्रेसी राजनीति की धुरी बने देवीलाल सबसे ज्यादा पांच बार मुख्यमंत्री रहे, पर उनका कार्यकाल कभी लंबा नहीं रहा। जनसंघ और भाजपा से उनके अच्छे रिश्ते रहे। ‘ताऊ’ के संबोधन से लोकप्रिय देवीलाल देश के उप-प्रधानमंत्री भी बने। उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला, जो उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने, ने भी भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चलायी। उसी कार्यकाल में दोनों में तल्खियां बढ़ीं और रास्ते अलग हो गये। साल 2018 में चौटाला परिवार और उसकी पार्टी इनेलो टूटी, तो बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) बना ली। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा बहुमत से वंचित रह गयी, तो 10 विधायकों वाली जजपा से गठबंधन हुआ और देवीलाल की चौथी पीढ़ी के दुष्यंत चौटाला उप-मुख्यमंत्री बने।
भजनलाल तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे
भजनलाल तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। वे केंद्र में मंत्री भी रहे। राजनीतिक जोड़तोड़ के मामले में उन्हें ‘पीएचडी’ कहा जाता था। केंद्र में नरसिंह राव सरकार को अल्पमत से बहुमत में बदलने में उनकी भूमिका की अक्सर चर्चा होती है। उनके दोनों बेटे- चंद्रमोहन और कुलदीप बिश्नोई- राजनीति में हैं। चंद्रमोहन कांग्रेस में हैं, जबकि अलग पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजका) बना कर फिर कांग्रेस में लौटने के बाद कुलदीप अब भाजपा में हैं। साल 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक हरियाणा की राजनीति इन्हीं तीन लाल परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही, पर उसके बाद इनका दबदबा कम होता गया। ‘चौथे लाल’ के रूप में हरियाणा की सत्ता संभालने वाले मनोहर लाल के कार्यकाल ने तो हालात ऐसे बना दिये कि कल तक जो परिवार हरियाणा की राजनीति की दिशा तय करते थे, आज उनके परिजनों का राजनीतिक भाग्य दूसरे दल और नेता तय कर रहे हैं। हुड्डा से लंबी तनातनी के बाद किरण चौधरी को आखिरकार भाजपा की शरण में जाना पड़ा, जिसने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने के बाद अब बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से विधानसभा का टिकट भी दे दिया है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने श्रुति को भिवानी-महेंद्रगढ़ से टिकट नहीं दिया था।
चंद्रमोहन की राजनीति पंचकूला और कालका सीट तक सिमटी
भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन की राजनीति पंचकूला और कालका विधानसभा सीट तक सिमट कर रह गयी है। कुलदीप बिश्नोई का पूरा ध्यान बेटे भव्य को राजनीतिक रूप से स्थापित करने पर है। कभी ‘दाता’ की हैसियत में रहा भजनलाल परिवार भी अब ‘याचक’ की मुद्रा में आ गया है। देवीलाल परिवार की कहानी कुछ अलग है। ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय के साथ मिल कर इनेलो चला रहे हैं, तो बड़े बेटे अजय अपने दोनों बेटों- दुष्यंत और दिग्विजय- के साथ मिल कर जजपा। इन दलों की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इनेलो को बसपा से गठबंधन करना पड़ा है, तो जजपा को उनके धुर विरोधी चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से। इनेलो और जजपा खुद को प्रदेश की राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखने की कोशिश कर रही हैं।
देवीलाल परिवार के कुछ सदस्य भाजपा से भी जुड़े। देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह चौटाला तो पिछली बार रानिया से निर्दलीय विधायक बन कर पहले मनोहर लाल और फिर नायब सिंह सैनी सरकार में मंत्री भी रहे। भाजपा ने उन्हें हिसार से लोकसभा चुनाव भी लड़वाया, पर हारने के बाद अब रानिया से विधानसभा टिकट के लायक भी नहीं समझा। सिरसा भाजपा जिलाध्यक्ष रहे आदित्य देवीलाल को भी मंडी डबवाली से टिकट नहीं मिल पाया है। जाहिर है, इस चुनाव में तीनों लाल परिवारों को अपनी राजनीति बचाने के लाले पड़े हैं।