गांवों में चिकित्सकों की कमी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की ग्रामीण आबादी डॉक्टरों की कमी का समस्या का सामना कर रही है। हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने भारत की स्वास्थ्य गतिशीलता (बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन)2022-23 नामक एक वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट को पहले ‘ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी’ कहा जाता था। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के गांवों में बड़ी संख्या में स्वास्थ्य उपकेंद्रों के पास अपना भवन नहीं है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों में सबसे अधिक 73 फीसदी कमी शल्यचिकित्सकों की है। इसके बाद, चिकित्सकों में 69 प्रतिशत, बाल रोग विशेषज्ञों में 68 प्रतिशत और प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों में 61 प्रतिशत) की कमी पायी गयी है। गांवों में चिकित्सकों की कमी की समस्या पिछले कई वर्षों से देखी जा रही है। सिर्फ एलोपैथी ही नहीं, होमियोपैथी और आयुर्वेदिक चिकित्सकों की भी कमी है। चिकित्सकों की कमी की वजह से गांव में बसे लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है और नतीजतन वे असमय काल के गाल में समा जाते हैं। इस समस्या से निपटने की कोशिशें भी समय-समय पर होती रही हैं, परंतु यह पर्याप्त नहीं दिखती है। स्थिति यह है कि पक्की नौकरी के बावजूद चिकित्सक गांव में नहीं जाना चाहते हैं।
कुछ राज्यों ने चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए सख्त कानून भी बनाये थे, तब भी गांव में सेवा देने से चिकित्सकों ने मना कर दिया। ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों के लिए 13,232 पद स्वीकृत हैं। इनमें से केवल 4,413 ही भरे गये हैं। सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मिलाकर ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में शल्यचिकित्सकों के लिए 3,371 स्वीकृत पद हैं, मगर 913 पद भरे जा सके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों में स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल सीटों की संख्या में 100 प्रतिशत से अधिक बढ़ी हैं।
इसके बावजूद ग्रामीण भारत में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी की समस्या बनी हुई है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से विशेष उपचार के लिए एक दर्जन से अधिक एम्स जैसे चिकित्सा संस्थानों का निर्माण हुआ है। सरकार की योजना है कि देश के 761 जिलों में से हरेक में कम से कम एक बड़ा अस्पताल बने। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत की बड़ी आबादी गांवों में बसती है। इतने प्रयासों के बावजूद गांवों में चिकित्सकों समेत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी चिंताजनक है। त्वरित गति से इस समस्या का निदान किया जाना चाहिए ताकि गांव के लोग भी लंबी आयु पायें और रोगमुक्त रह सकें।