भारत की सनातन समावेशी संस्कृति

ऋग्वेद का एक वाक्य है ‘एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति’ यानी सत्य एक है, लेकिन बुद्धिमान लोग उसे अलग-अलग नामों से बुलाते हैं। यह वाक्य ऋग्वेद में आया है। इसका मतलब यह भी है कि एक ही चेतना सभी में है। जाहिर है हमारी सत्य सनातन संस्कृति बहुत समावेशी है और मानती है कि ईश्वर की आराधना अलग-अलग पद्धतियों या मजहबों के माध्यम से की जा सकती है लेकिन सबकी मंजिल यानी ईश्वर एक है। पिछले कुछ दिनों से संविधान की बहुत दुहाई दी जा रही है। हमारे संविधान का भी सार यही है जो ऋग्वेद ने बताया है यानी सत्य एक है जिसे किसी भी मार्ग से खोजा जा सकता है, यानी पंथ निरपेक्षता ! जाहिर है हमें एक नागरिक के रूप में ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हमारी समावेशी संस्कृति को धक्का पहुंचे। यही बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने कहने की कोशिश की लेकिन उनकी बात का गलत मतलब निकाला गया और इस पर सियासत शुरू हो गई। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि भाजपा और संघ परिवार के ही बहुत से लोग डॉ मोहन भागवत की इस बात से सहमत नहीं है ? उप्र के संभल या राजस्थान के अजमेर में जो हिंदूवादी दावे किए जा रहे हैं, उनसे स्पष्ट है कि यह तबका न तो शीर्ष अदालत की परवाह कर रहा है और न ही सरसंघचालक की नसीहत सुनने, मानने को तैयार है। बल्कि साधु-संतों का एक वर्ग सरसंघचालक के कथन का विरोध करने लगा है। यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि संभल (उप्र) में 1978 के सांप्रदायिक दंगों की आड़ लेकर खुदाई की जा रही है। उन दंगों में 184 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। अधिकांश लोग हिंदू थे। सवाल यह है कि इतने पुराने दंगों का संदर्भ अब क्यों उठाया जा रहा है? क्या प्रासंगिकता है? एक पुराना नक्शा जांच के दौरान सामने आया है, जिसके मुताबिक 68 हिंदू तीर्थों और 19 कूपों (कुओं) की खोज की जानी है। अब यह नक्शा संभल। जिलाधिकारी के पास है, जिस नक्शे को ‘शंभल महात्म्य’ कहा जाता है। क्या इन तीर्थों के लिए भी खुदाई और जांच कराई जाएगी ? बीते दिनों एक कूप से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली थीं। कुछ खंडित प्रतिमाएं भी मिली थीं। अब संभल में एक प्राचीन बावड़ी सामने आई है। इस समय यह 210 वर्ग मीटर में बनी है। बावड़ी को राजा सहसपुर के राजघराने के कुंवर जगदीश सिंह के नाना ने बनवाया था। इसमें कोई सुरंग नहीं है, बल्कि बावड़ी गोलाई में बनी है। बावड़ी में तीन मंजिलें पाई गई हैं। बहरहाल, यह सवाल तो सबके मन में उठना ही चाहिए कि हिंदुओं पर हुए सदियों पुराने अत्याचारों को अब सामने लाकर क्या हासिल होगा ? उन अत्याचारों के लिए मुगल आक्रांता दोषी थे। उनके अत्याचारों का बदला आज के भारतीय मुसलमान से किस तरह लिया जा सकता है ? जब ऐसा किया जाना संभव नहीं है और ना ही ऐसा होना चाहिए तो फिर क्यों हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग को तलाशा जा रहा है ? ऐसा करने से देश का भला कैसे होगा ? यदि इस मामले में हिंसा होती है तो नुकसान किसका होगा ? अगर भारत सुरक्षित नहीं है, यदि भारत तरक्की की राह में पिछड़ता है तो इसका नुकसान सबसे ज्यादा हिंदुओं को ही होगा क्योंकि वही इस देश में बहुसंख्यक हैं। जाहिर है यदि हिंदू हित की दृष्टि से भी सोचा जाए तो इस तरह की हरकतें बंद की जानी चाहिए। यही संदेश संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत कट्टरपंथी हिंदुओं को देना चाहते हैं। हिंदू उन्माद को बढ़ावा देकर आखिर क्या हासिल होगा ? जाहिर है मोहन भागवत वही कह रहे हैं जो हमारे वेदों का सार है या जो हमारी संस्कृति की सहिष्णुता का मर्म है। दरअसल,सभी विचारशील लोगों को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या पुराने इतिहास के विद्रूप रूप को सामने लाने से हमारा भला होने वाला है ? यदि नहीं तो यह सब बंद होना चाहिए।