December 23, 2024

किसान मेला में  अतिथियों ने  दिया जैविक खेती पर जोर 

पंतनगर   ( आखरीआंख ) मार्वष्वविद्यालय में उत्तर क्षेत्र क्षेत्रीय कृषि मेला-सह-105वें अखिल भारतीय किसान मेले का आज गांधी मैदान में उद्घाटन हुआ। प्रगतिषील कृषक पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने किसान मेले का फीता काटकर उद्घाटन किया। इस अवसर पर विष्वविद्यालय के कुलपति, डा. तेज प्रताप; स्थानीय विधायक, श्री राजेष शुक्ला; भारत सरकार के कृषि एवं किसाल कल्याण मंत्रालय के अपर आयुक्त, डा. वाई.आर. मीणा; निदेषक प्रसार षिक्षा, डा. वाई.पी.एस. डबास; के अतिरिक्त अन्य अतिथि एवं वैज्ञानिक उपस्थित थे। कुलपति, डा. तेज प्रताप द्वारा पद्मश्री भारत भूषण त्यागी एवं पद्मश्री कंवल सिंह चैहान को मेले में लगी उद्यान प्रदर्षनी एवं विष्वविद्यालय के स्टालों का अवलोकन कराया गया। इसके बाद कुलपति ने अतिथियों को खुली जीप में बैठाकर मेला प्रांगण का भ्रमण कराया। मुख्य उद्घाटन समारोह गांधी हाल सभागार में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के अपने संबोधन में पद्मश्री शरत भूषण त्यागी द्वारा कहा गया कि किसानों की आय को दोगुना करने हेतु समन्वित प्रयास किये जाने की आवष्यकता है। उन्हांेने जैविक खेती पर बल देते हुए कहा कि विष्वविद्यालय द्वारा जैविक खेती पर छोटे-छोटे माॅडल लगाये जाने चाहिए। उन्होंने प्रकृति की व्यवस्था समझकर उससे बिना कोई छेड़-छाड़ किये खेती किये जाने के तरीके अपनाये जाने पर बल दिया। मेले में दूसरे मुख्य अतिथि पद्मश्री कंवल सिंह चैहान ने कहा कि भारत में खेती की बहुत संभावनाएं हैं तथा यह देष विष्व की फूड फैक्ट्री बन सकता है। उन्होंने रासायनिक खेती पर अनुसंधान कर कुछ वर्षों बाद इस पर प्रतिबंध लगाने की बात कही। साथ ही किसानों के समूह बनाकर जैविक खेती करने का सुझाव दिया। कृषि में पशुधन के योगदान को महत्वपूर्ण बताते हुए उसके गोबर व मूत्र का प्रयोग करने तथा स्थानीय नस्लों को बढ़ावा देने की उन्होंने बात कही।
उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे स्थानीय विधायक, श्री राजेष शुक्ला, ने कहा कि किसानों ने अपनी मेहनत से कृषि उत्पादन तो बढ़ा लिया लेकिन उनके उत्पाद का अच्छा मूल्य नही मिल पा रहा है। आज भी उन्हें अपने उत्पाद विक्रय करने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और यही वजह है कि किसान का बच्चा किसान नहीं बनना चाहता। उन्होंने इस मुद्दे पर गहन विचार करने की आवष्यकता बतायी। श्री शुक्ला ने कहा कि जिन क्षेत्रों में हरित क्रांति का प्रभाव साकारात्मक नहीं रहा उन क्षेत्रों में इन्द्रधनुषीय क्रांति लाने की जरूरत है, यानि किसानों की रूचि व क्षेत्र की आवष्यकता के अनुसार कृषि के विभिन्न आयाम जैसे पुष्पोंत्पादन, फलोत्पादन, मषरूम उत्पादन, मुर्गी पालन, पशुपालन, मछली पालन, इत्यादि, को अपनाये जाने की आवष्यकता है।
कुलपति डा. तेज प्रताप ने कहा कि कृषि कुंभ से विख्यात यह किसान मेला किसानों के लिए महत्वपूर्ण आयोजन है, जिससे किसान के खेती करने के नजरियें में बदलाव आता है तथा उसकी खेती बेहतर व लाभप्रद होती है। डा. प्रताप ने कहा कि नये दौर की कृषि का प्रादुर्भाव 2020 से 2050 के बीच होने वाला है तथा जैविक खेती भारत के लिए आवष्यक है। उन्होंने कहा कि अभी बहुत कम किसान नये दौर की खेती कर रहें है, जिनसे अन्य किसानों को मार्गदर्षन प्राप्त हो सकता है। इस किसान मेले में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाये गये ऐसे ही किसान अपने व्याख्यानों से इस किसान मेले में आये किसानों को नये दौर की खेती की ओर ले जायेंगे।
डा. वाई.आर. मीणा ने समारोह में विषिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि पंतनगर विष्वविद्यालय शोध के क्षेत्र में अग्रणी है और यह किसान मेला अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त कर चुका हैं। यह मेला बिना किसी व्यवधान के लगातार आयोजित होता आ रहा है। इस किसान मेले के दौरान किसान विष्वविद्यालय द्वारा किये गये, अनुसंधान, उपलब्ध कराये गये। कृषि निवेष, बीज, खाद इत्यादि से संबंधित जानकारियों को अर्जित करते है और उन्हें अपने खेतों में उपयोग करते हैं। डा. मीणा ने कहा कि मेले में आये किसान भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी लें और उनका लाभ उठायें।
उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में निदेषक प्रसार षिक्षा डा. डबास ने सभी आगन्तुकों का स्वागत किया एवं मेले के विषय में जानकारी दी। कार्यक्रम के अंत में विष्वविद्यालय के निदेषक शोध, डा. एस.एन. तिवारी, ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों द्वारा विभिन्न कृषि साहित्यों का विमोचन भी किया गया, साथ ही उत्तराखण्ड के विभिन्न जनपदों से चयनित प्रगतिषील किसानों को सम्मानित किया गया। गांधी हाल में बड़ी संख्या में किसान, विद्यार्थी, वैज्ञानिक, षिक्षक, अधिकारी एवं अन्य आगंतुक उपस्थित थे। मेले में उत्तराखण्ड के विभिन्न जनपदों के साथ-साथ अन्य प्रदेषों तथा नेपाल के किसान भी बड़ी संख्या में आते हैं।