December 12, 2024

सरकारी कर्मचारी की चुप्पी खलने लगी है राजनैतिक दलों को

देहरादून (  आखरीआंख )  सर कार के खिलाफ सालभर मुठ्ठियां तानने के बाद कर्मचारी वर्ग ने रहस्यमयी चुप्पी ओढ़ ली है। यह चुप्पी किस करवट बैठेगी यह तो समय ही बताएगा, मगर इस वर्ग के वोट बैंक को झटकने के लिए सभी दल लालायित हैं। यही वजह है कि कार्मिक तबका एक बड़े प्रेशर ग्रुप के तौर पर भी जाना जाता है। यह ऐसा वर्ग भी है, जो किसी का खास नहीं और किसी का दास नहीं के फैक्टर पर चलता है और आखिरी वक्त तक भी इनकी मुठ्ठी बंद ही रहती है। यही वजह भी है कि इस वर्ग को लेकर कोई भी दल पूरा विश्वास के साथ यह कहने की स्थिति में नहीं रहता कि कार्मिकों की फौज किसके पक्ष में जाकर खड़ी होगी।
प्रदेश में राय और केंद्र सरकार के कार्मिकों की संया करीब पौने सात लाख है। बात चाहे राय सरकार के कार्मिकों की हो या केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाले कार्मिकों की, सभी की मुठ्ठियां सालभर तनी रहीं। राय सरकार के कार्मिक सेवाकाल में तीन पदोन्नति, एसीपी व ग्रेड-पे बढ़ाने को लेकर धरना-प्रदर्शन करते रहे। खासकर कार्मिकों के सबसे बड़े संगठन कार्मिक, शिक्षक, आउटसोर्स संयुक्त मोर्चा सीधे तौर पर सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया था। इस आंदोलन ने तब और धार पकड़ ली, जब मनमाफिक भत्ते न मिलने को लेकर सचिवालय संघ भी आंदोलन में कूद पड़ा। हालांकि, सरकार ने कई दौर की वार्ता के बाद कुछ मांगों पर स्वीकृति दे दी और कुछ पर आश्वासनों की घुट्टी पिलाई। आचार संहिता से ऐन पहले तक तनातनी का यह दौर जारी था और अब राय कार्मिक खामोश बैठ गए हैं। उधर, केंद्रीय कार्मिक भी विभागों में आउटसोर्सिंग बंद करने, सातवें वेतनमान की संस्तुतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने, रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ समाप्त करने और न्यूनतम वेतन पर जब-तब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे।
इसके साथ ही बैंक कार्मिकों का पे-रिवीजन भी नवंबर 2017 से लंबित होने के चलते वह भी सरकार के सामने खड़े होते रहे। हालांकि, सरकार ने भी हमेशा की तरह कार्मिकों को साधने के तमाम जतन किए, मगर फिर भी रूठने-मनाने का यह दौर आचार संहिता तक जारी रहा। बीच-बीच में कार्मिकों की मांगों को लेकर विपक्षी दल भी सरकार पर दबाव बनाते रहे, ताकि उन्हें अपने पक्ष में खड़ा किया जाए। अब जब चुनाव का समय करीब है और कार्मिक मतदाता पूरी तरह खामोश नजर आ रहे हैं। या मानो कि वह तय कर चुके हैं कि किस पाले की तरफ उन्हें झुकना है। मांगों पर एकजुट, चुनाव में व्यक्तिगत निर्णय कार्मिक वर्ग भले ही एक बड़ा प्रेशर ग्रुप है, मगर इसका असर अधिकांश रूप में अपनी मांगों को लेकर नजर आता है। जब भी चुनाव में वोट डालने की बारी आती है तो यह वर्ग इस तरह चुप्पी साधकर अपनी पसंद-नापसंद को आधार बनाकर वोट डालता है। संयुक्त मोर्चा बुलाएगा बैठक कार्मिक, शिक्षक, आउटसोर्स संयुक्त मोर्चा के मुय संयोजक ठा. प्रहलाद सिंह ने बताया कि लोकसभा चुनाव को लेकर जल्द बैठक बुलाकर संयुक्त रूप से कोई राय कायम की जाएगी। यह राय किस रूप में होगी, इस पर कहने से मुय संयोजक ने अभी परहेज किया है। राय कार्मिक, करीब छह लाख (सभी श्रेणी) शिक्षक वर्ग, करीब डेढ़ लाख निकाय-निगम कर्मी, करीब 50 हजार केंद्रीय कर्मी रक्षा व केंद्रीय संस्थान, करीब 15 हजार बैंक-बीमा कर्मी, करीब 14 हजार।