भारत की कामयाबी का चांद
( आखरीआंख )
अंतरिक्ष में भारत ने सफलता की एक और लंबी छलांग लगाई है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो ने सोमवार को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग सफलतापूर्वक संपन्न की। इससे पहले चंद्रयान-2 को 15 जुलाई को लॉन्च किया जाना था, लेकिन आखिरी वक्त पर एक तकनीकी गड़बड़ी पकड़ में आ जाने से लॉन्चिंग टाल दी गई थी। इसकी सफलता ने जाहिर किया है कि अब क्रायोजेनिक इंजन पर हमारी पकड़ मजबूत हो गई है।
चंद्रयान-1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा गया है। चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्य के बाद चांद की सतह पर, उसके नीचे और अति विरल वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण का अध्ययन करना इस मिशन का मुय उद्देश्य है। चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। चंद्रमा का यह ऐसा इलाका है, जिसकी अब तक सीधे कोई जांच नहीं हुई है।
मून मिशनों के माहिर अमेरिका, रूस और चीन ने भी अभी तक इस तरफ कोई लैंडिंग नहीं की है। इस इलाके के कुछ क्रेटर हमेशा छाया में रहते हैं और सूरज की किरणें न पडऩे से यहां बर्फ की शक्ल में पानी मिलने की संभावना यादा है। हाल में कुछ ऑर्बिट मिशंस ने भी इस पर मोहर लगाई है। कहा जा रहा है कि बेहद ठंडे क्रेटर्स में सौर परिवार की प्रारंभिक सामग्री के अवशेष भी मौजूद हो सकते हैं है।
पानी की मौजूदगी आगे चलकर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इंसान की लंबी, सशरीर उपस्थिति के लिए केंद्रीय भूमिका निभा सकती है। यहां की सतह की जांच चंद्रमा के निर्माण को और गहराई से समझने में मददगार साबित होगी। भविष्य के मिशनों के लिए संसाधन की दृष्टि से इसके इस्तेमाल की संभावनाओं का पता लगाना संसार के सभी चंद्र अभियानों का एक बड़ा उद्देश्य है ही।
सबसे बड़ी बात यह कि पृथ्वी के इस एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह को दु्र्लभ अंतरिक्षीय सूचनाओं के केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। हीलियम-3 जैसा बहुमूल्य खनिज मिलने की भी आशा है, जिसके एक टन की कीमत करीब 5 अरब डॉलर हो सकती है। चंद्रमा से ढाई लाख टन हीलियम-3 लाया जा सकता है, जिसकी कीमत कई लाख करोड़ डॉलर होगी। इस काम के लिए चीन ने भी इसी साल अपना चांग ई-4 यान भेजा था। अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ की चंद्रमा के प्रति दिलचस्पी बढऩे की यह एक बड़ी वजह है।
दुनिया की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के मालिक जेफ बेजोस का इरादा चंद्रमा पर कॉलोनी बसाने का है। इस सफलता के लिए इसरो के वैज्ञानिक निश्चय ही बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इसके लिए जीतोड़ परिश्रम किया और शुरुआती नाकामियों के बावजूद अपना धैर्य बनाए रखा। यह एक दूरगामी अभियान है, जिसमें सफलता-असफलता के दौर आते-जाते रहेंगे। हमें हर स्थिति में अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़ा होना होगा और अपनी अपेक्षाओं का बोझा लादकर उन पर अतिरिक्त दबाव बनाने से बचना होगा।