April 19, 2024

रिक्त पद भरने से घटेगा मुकदमों का बोझ

आखरीआंख

उचतम न्यायालय ने संविधान पीठ के पास भेजे गये महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों की सुनवाई करने और फैसले के लिये पांच सदस्यीय स्थाई संविधान पीठ के गठन का निर्णय लिया है। लेकिन सात सदस्यीय और नौ सदस्यीय संविधान पीठ के गठन की बाट जोह रहे मुकदमों का क्या होगा ऐसे मुकदमों के लिये संविधान पीठ का गठन कब होगा न्यायालय को सात और नौ सदस्यीय संविधान पीठ के गठन के बारे मे भी विचार करना होगा।
उचतम न्यायालय ने न्यायिक काम का बोझ कम करने के लिये अब एकल न्यायाधीश की नियमित पीठ गठित करने का भी फैसला किया है। एकल न्यायाधीश सात साल तक की सजा के दंडनीय अपराधों से संबंधित जमानत, अग्रिम जमानत और स्थानांतरण याचिकाओं की सुनवाई करेंगे और उन पर फैसला देंगे। नियमित रूप से एकल न्यायाधीश की पीठ गठित करने के लिये उचतम न्यायालय के नियमों में बदलाव किया गया है। वैसे करीब तीन दशक पहले तक ग्रीष्मावकाश के दौरान एकल न्यायाधीश ही आवश्यक मामलों की सुनवाई करते थे। साथ ही याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने या नहीं देने के बारे में निर्णय लेते थे।
ग्रीष्मावकाश के दौरान ही 24 जून, 1975 को एकल पीठ में सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद उच न्यायालय के फैसले के खिलाफ तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को अंतरिम राहत दी थी। उच न्यायालय ने इन्दिरा गांधी का निर्वाचन निरस्त कर दिया था। उचतम न्यायालय से अंतरिम राहत मिलने के अगले दिन ही प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपात स्थिति लागू की थी।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट के अनुसार दो सितंबर को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के विचार और निर्णय के लिये 46 मुय मामले लंबित हैं जबकि 358 मामले मुय विषय से ही संबंधित हैं। निश्चित ही इन मामलों की सुनवाई में काफी लंबा वक्त लग सकता है। इसके विपरीत, सात और नौ सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष विचार और निर्णय के इंतजार में पांच मुय मामले लंबित हैं। इन दोनों मामलों में क्रमश: 8 और 131 मुय विषय से संबंधित अन्य याचिकायें हैं। आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को उचतम न्यायालय अस्तित्व में आया और इसकी पहली कार्यवाही 28 जनवरी, 1950 को संसद भवन में बने चैंबर में हुई थी। उचतम न्यायालय में उस समय प्रधान न्यायाधीश के अतिरिक्त सात न्यायाधीश थे जो एक साथ बैठकर मामलों की सुनवाई करते थे। लेकिन धीरे-धीरे मुकदमों की संया बढ़ती गयी तो ये न्यायाधीश दो और तीन सदस्यों की पीठ में बैठने लगे। कानूनी दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण मामला होने पर पांच न्यायाधीशों की पीठ इसकी सुनवाई करती थी।
न्यायालय में काम के बढ़ते बोझ को देखते हुये संसद ने पहली बार 1956 में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की संया सात से बढ़ाकर 11 की थी। इसके बाद 1960 में इनकी संया 14, वर्ष 1978 में 18 और 1986 में 26 की गयी थी जबकि 2008 में प्रधान न्यायाधीश सहित इनकी संया बढ़ाकर 31 कर दी गयी थी। सरकार ने उचतम न्यायालय में लंबित मामलों की बढ़ती संया को ध्यान में रखते हुए इसके न्यायाधीशों की संया प्रधान न्यायाधीश सहित 31 से बढ़ाकर 34 कर दी। शीर्ष अदालत के लिये चार नये न्यायाधीशों की नियुक्ति को सरकार ने मंजूरी भी दे दी है।
इन न्यायाधीशों के पद ग्रहण करने के बाद उचतम न्यायालय अपनी पूरी क्षमता से काम करेगा। इसके विपरीत, उच न्यायालय आज भी करीब 400 से अधिक न्यायाधीशों के रिक्त पदों के बीच काम करने के लिये मजबूर है। आखिर क्यों रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने में सरकारी विलंब समझ से परे हैं। उचतम न्यायालय में लंबित मुकदमों की संया सिर्फ 59,616 है। इनमें से 13,727 मुकदमे सुनवाई के लिये विभिन्न कारणों से तैयार ही नहीं हैं और इस वजह से इन्हें सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है। न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार सिर्फ 20,876 मामले नियमित सुनवाई के लिये तैयार हैं जबकि 38,474 मामले प्रारंभिक चरण में हैं।
वही उचतम न्यायालय में लंबित मुकदमों की संया 59,616 है जबकि उच न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संया 44,13,198 है। उच न्यायालयों में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संया 1079 है लेकिन इनमें आमतौर पर करीब चार सौ पद हमेशा ही रिक्त रहते हैं। उच न्यायालयों में आज भी 30 साल से यादा समय से फैसले का इंतजार कर रहे मुकदमों की संया 30,054 है जबकि 20 से 30 साल पुराने मुकदमों की संया 95,168 है।
तो क्या आर्थिक सर्वेक्षण में इस संबंध में की गयी सिफारिश पर अमल करने का यह उचित समय नहीं है अगर उच न्यायालयों के लिये न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संया बढ़ाना संभव नहीं हो तो कम से कम इनमें न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर समय गंवाये बगैर ही नियुक्तियां की जानी चाहिए ताकि लंबित मुकदमों का तेजी से निपटारा हो सके।