देहरादून के राज शेखर भट्ट युवा संपादक सारस्वत सम्मान से सम्मानित हुये
नई दिल्ली ( आखरीआंख समाचार ) हिन्दी भवन नई दिल्ली में ‘‘व्यंग्य की महापंचायत’’ कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम को ‘‘माध्यम साहित्यिक संस्थान’’ द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में 6 पुस्तकों का विमोचन किया गया। जिसमें विनोद कुमार विक्की के अतिथि संपादक कार्यकाल में प्रकाशित ‘‘अट्टहास’’ का जनवरी का विशेषांक और उनका स्वयं का व्यंग्य संग्रह ‘‘भेलपूरी’’ भी था। इसी कड़ी में डाॅ. ममता मेहता का व्यंग्य संग्रह ‘‘धोबी का व्यंग्य पाट‘‘ और डाॅ. स्नेहलता पाठक का व्यंग्य संग्रह ‘‘सच बोले कौवा काटे’’ का भी लोकार्पण किया गया। साथ ही साथ वीना सिंह की पुस्तक ‘‘बेवजह यूं ही’’ और डाॅ. संगीता कुमार की पुस्तक ‘‘तुम्हारे लिये’’ का भी विमोचन किया गया।
माध्यम साहित्यिक संस्थान की स्थापना 54 वर्ष पूर्व प्रसिद्ध कवि डाॅ. हरिवंश राय बच्चन, डाॅ. शिव मंगल सिंह सुमन, डाॅ. विद्या निवास मिश्र, ठाकुर प्रसाद सिंह, डाॅ. चन्द्र देव सिंह और वर्तमान महासचिव अनूप श्रीवास्तव ने की थी। कार्यक्रम में सात साहित्यकारों को सम्मान दिया गया गया। जिसमें मेरठ के संतराम पाण्डेय हिन्दी साहित्य संवर्धन एवं प्रोत्साहन सारस्वत सम्मान और देहरादून के राज शेखर भट्ट युवा संपादक सारस्वत सम्मान दिया गया। बिहार के विनोद कुमार विक्की युवा व्यंग्यकार सारस्वत सम्मान, पिथौरागढ़ के ललित शौर्य नवलेखन हेतु सारस्वत सम्मान और बिहार के कैलाश झा किंकर अंगिका भाषा में व्यंग्य लेखन हेतु सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। दिल्ली की शशि पाण्डेय युवा महिला व्यंग्यकार हेतु सारस्वत सम्मान और दिल्ली की अर्चना चतुर्वेदी व्यंग्य लेखन में उत्कृष्ठ योगदान हेतु सामरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। ‘‘व्यंग्य की महापंचायत’’ कार्यक्रम में सभी वरिष्ठ व्यंग्यकारों द्वारा चर्चा-परिचर्चा का दौर चला। जिसमें ‘‘व्यंग्य के मानक और संप्रेषणीयता की चुनौती’’ पर चर्चा की गयी। इस चर्चा में सुभाष चन्दर, अरविंद तिवारी, गुरमीत बेदी, आलोक पुराणिक, राजेन्द्र वर्मा, रामकिशोर उपाध्याय, सारस्वत श्रीवास्तव, डाॅ. स्नेहलता पाठक, महेन्द्र कपूर, राजशेखर चैबे, अरूण अर्णव खरे, अरूण कुमार उर्मेलिया, गिरीश पंकज, निर्मण गुप्त, वीणा सिंह और विनोद कुमार विक्की ने भाग लिया। इस परिचर्चा में व्यंग्य के गिरते स्तर और पाठकों के घटते स्तर गहन मंथन किया गया। व्यंग्य के मानकों और व्यंग्य विधा के बदलते स्वरूप पर भी सभी व्यंग्यकारों ने अपनी-अपनी टिप्पणी से अनेक नये तथ्य उजागर किये। जाहिर है कि विसंगतियों से व्यंग्य पैदा होता है, लेकिन अब वर्तमान समय और नये लेखकों की नयी मंत्रणा से व्यंग्य स्वयं विसंगति बनता जा रहा है। जिसके उपचार की आवश्यकता है और नये व्यंग्यकारों को पठन-पाठन, चिंतन-मनन करने की जरूरत है।