November 22, 2024

जमानत नियम है-जेल अपवाद: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत आरोपी को जमानत देते हुए कड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जमानत नियम है-जेल अपवाद है, और यह कानूनी सिद्धांत सभी अपराधों पर लागू होता है।
गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) जैसे विशेष कानूनों के तहत दर्ज अपराधों में भी यह लागू होता है। पीठ ने कहा कि यदि अदालतें उचित मामले में जमानत देने से इंकार करना शुरू कर देंगी तो यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। बेशक, अभियोजन के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करना अदालत का कर्त्तव्य है। जलालुद्दीन खान पर प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के कथित सदस्यों को अपने घर की ऊपरी मंजिल किराए पर देने पर यूएपीए लगाया गया था।
साथ ही, अब खत्म हो चुकी आईपीसी की अन्य अनेक धाराओं के तहत भी अनेक मामले उनके खिलाफ दर्ज हैं। आरोप हैं कि किराये पर लिए गए इस परिसर का इस्तेमाल हिंसक कृत्यों को अंजाम देने के प्रशिक्षण और अपराध की साजिश रचने के मकसद से बैठकें करने के लिए किया गया। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की जांच से पता चला कि यह आपराधिक साजिश आतंक फैलाकर देश की एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने के लिए रची गई।
2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित यात्रा के दौरान बिहार पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर खान के घर पर छापेमारी की थी। हकीकत में जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या 2022 के एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के अनुसार साढ़े चार लाख के करीब है, जिन्हें जमानत नहीं मिलती।
अपने यहां मुकदमे लंबे समय तक चलते रहते हैं। जजों की संख्या कम है और मामले बहुत ज्यादा। दूसरे जब तक अपराध सिद्ध नहीं होता आरोपी को जमानत देना गलत नहीं है बशत्रे वह खतरनाक किस्म का अपराधी या बेहद शक्तिशाली न हो। जेलों में आरोपियों को जबरन बंद रखना और दोषमुक्त साबित होने पर बिना शर्त रिहा कर देने से उनको पूरा न्याय नहीं मिलता। जेल वास्तव में

अपवादस्वरूप ही इस्तेमाल होनी चाहिए।
इस तरीके से सिर्फ जेलबंदियों को ही नहीं सहना पड़ता,  बल्कि आरोपी का पूरा परिवार को ही भुगतना पड़ता है। मामले में भी खान के किरायेदार ही आरोपी हैं। यदि खान उस साजिश में सीधे शामिल नहीं पाए जा रहे हैं तो फिलवक्त उन्हें जमानत देना ही उचित और तर्कसंगत है।