September 22, 2024

आखिर क्यों डॉ निशंक चाहते है कांग्रेस से हरीश रावत ही हो लोकसभा प्रत्याशी

हरिद्वार ( आखरीआंख समाचार )  पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा हरिद्वार सांसद डॉ रमेश पोखरियाल चाहते हैं कि हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से उनके सामने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ही चुनाव लड़े। डॉ निशंक पिछले दिनों कह भी चुके हैं कि उन्हें अच्छा लगेगा कि हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में उनका मुकाबला हरीश रावत से हो। हालांकि डॉ निशंक बार-बार ऐसा क्यों कह रहे हैं। इसकी वजह सब नहीं जानते। चुंकि डॉ रमेश पोखरियाल निशंक अविभाजित उत्तर प्रदेश के सियासतकार रहे है और उत्तराखंड की सियासत में वह मजे हुए राजनीति खिलाड़ी माने जाते हैं। इसीलिए उनके द्वारा जो बोला जा रहा है चुनावी विश्लेषक उस पर जरूर गौर कर रहे हैं।
 चुनावी विश्लेषक कहते हैं कि डॉ रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा यह कहना कि उनके सामने हरीश रावत चुनाव लड़े तो उन्हें अच्छा लगेगा। इसमें जीत का राज छुपा है। चुनाव विश्लेषक स्पष्ट करते हैं कि हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र की सियासत में हरीश रावत एक ऐसा सियासी चेहरा है। जिनके चुनाव मैदान में उतरते ही वोटों का ध्रुवीकरण बड़ी तेजी से शुरू हो जाता है। चाहे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव। क्योंकि कुछ तो हरीश रावत की वजह से और कुछ उनके पास जो टीम है उसकी वजह से वोटों का धु्रवीकरण होता है। इस बात को पूर्व मुख्यमंत्री एवं मौजूदा सांसद डॉ रमेश पोखरियाल अच्छी तरह समझ रहे हैं। उन्हें मालूम है कि पर्वतीय क्षेत्र के वोटों में भी वह तभी अव्वल रह सकते हैं जब कांग्रेस का प्रत्याशी हरीश रावत हो। मूलनिवासी वोटर में भी वह तभी आगे रह सकते हैं जब कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर हरीश रावत ही चुनाव लड़े। मसला साफ है कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत होंगे तो डॉ रमेश पोखरियाल निशंक पर्वतीय मूल के वोटों में गढ़वाल बनाम कुमायूं की लड़ाई में जीत जाएंगे। हरीश रावत प्रत्याशी होंगे तो डॉ रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के मूल निवासी यानी कि मैदानी क्षेत्र में ध्रुवीकरण के आधार पर जीत जाएंगे। चुनाव विश्लेषक बताते हैं कि डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को इस बात का आभास है कि यदि कांग्रेस के प्रत्याशी हरीश रावत के बजाय कोई और नेता होता है तो मैदान की वोटों में ध्रुवीकरण नहीं होगा। अधिक प्रयास करने पर यदि थोड़ा-बहुत ध्रुवीकरण हुआ भी तो उसमें वह जीत नहीं पाएंगे। इसीलिए डॉ रमेश पोखरियाल हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर हरीश रावत को ही देखना चाहते हैं।
चुनावी विश्लेषक बताते हैं कि डॉ रमेश पोखरियाल निशंक पूर्व सीएम हरीश रावत को सामने लाकर चुनाव ही नहीं जीतना चाहते बल्कि अपना टिकट भी पक्का करना चाहते हैं। वह अच्छी तरह से समझते हैं कि यदि कांग्रेस ने किसी अन्य नेता को चुनाव लड़ा दिया तो निश्चित रुप से भाजपा में उनके टिकट पर भी संकट खड़ा हो जाएगा। तब उनके सामने टिकट प्राप्त करने की ही चुनौती और खड़ी होगी। क्योंकि कांग्रेस की तरह भाजपा हाईकमान भी स्थानीय पर विचार शुरु कर देगा। ऐसी स्थिति में क्या उन्हें टिकट नहीं मिल पाएगा। यदि हरीश रावत सामने रहेंगे तो भाजपा में टिकट की लड़ाई में डॉक्टर निशंक आगे रहेंगे।
 विश्लेषक का स्पष्ट कहना हैं कि कांग्रेस में जैसे-जैसे हरीश रावत के नाम आगे बढ़ेगा तो डॉ निशंक के केन्द्रीय राजनीतिक पैरोकारों की ओर से पार्टी हाईकमान पर इस बात के लिए ही दबाव रहेगा कि पूर्व सीएम के मुकाबले पूर्व सीएम को ही उतारना उचित रहेगा। अन्य कोई नेता पूर्व सीएम का मुकाबला नहीं कर पाएगा। इसी रणनीति पर टिकट आसानी से हासिल हो जाएगा। वैसे कांग्रेस में भी कुछ नेता यही मानते हैं कि हरीश रावत भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं। वह डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को सामने कर कांग्रेस में अपने टिकट की दावेदारी को मजबूत कर रहे हैं। उनके स्थानीय और केंद्रीय पैरोंकारों ने यह बात जोर-शोर से उठाना भी शुरू कर दी है कि यदि भाजपा में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट होता है। तो कांग्रेस में यदि उनका मुकाबला कर सकते हैं तो वह हरीश रावत ही है। क्योंकि उत्तराखंड की सियासत में डॉक्टर रमेश पोखरियाल का राजनीतिक तोड़ हरीश रावत ही है ।जैसे ही डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के पूरे प्रदेश के हर गांव में समर्थक हैं। वैसे ही हरीश रावत के समर्थक भी हर गांव में है। दोनों नेताओं के पास अपनी निजी टीम भी है। लेकिन हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र की चुनावी सियासत को अच्छी तरह समझने और जानने वाले राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसा कतई नहीं है ।कि पूर्व सीएम का मुकाबला पूर्व सीएम ही कर सकते हैं ।यदि कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हो तो भाजपा में कई ऐसे स्थानीय नेता है जो कि उन्हें चुनावी मुकाबले पहले के दौर में ही पिंछाड़ देंगे। ऐसी स्थिति कांग्रेस में भी है। यदि भाजपा के पूर्व सीएम डॉ रमेश पोखरियाल चुनाव मैदान में उतरते हैं तो कांग्रेस में भी कई नेता है जो कि पहले ही झटके में उन्हें पीछे धकेल देंगे।
वही चुनावी विश्लेषको का साफ-साफ कहना हैं कि कि ऐसा नहीं कि दोनों में से कोई एक पूर्व सीएम चुनाव मैदान में उतरे और सारा पर्वतीय मूल का वोटर उनके पक्ष में चला जाए। उदाहरण के तौर पर वह वर्ष 2009 के चुनावी परिणाम सामने रखते हैं। इसमें दिखाते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव लड़े थे। तो पर्वतीय मूल की अधिकतर बस्तियों में वह पिछड़ गए थे। उनके मुकाबले भाजपा के स्वामी यतींद्रानंद गिरि आगे निकल गये थे। यह बात अलग है कि मैदानी क्षेत्र के वोटर में भाजपा कमजोर पड़ गई थी। अब वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हुआ था। जो ध्रुवीकरण हुआ था तो उसमें भी अंतिम दौर में जाकर बसपा प्रत्याशी मोहम्मद शहजाद के मुकाबले हरीश रावत को ही लाभ पहुंचा था। लेकिन अब सियासत बदल गई है वर्ष 2014 के बाद राजनीति में सब कुछ उलट-पुलट हो गया है। इसीलिए न तो पूर्व सीएम के मुकाबले पूर्व सीएम को लड़ाने की कोई मजबूरी रह गई है और ना ही इससे जीत के समीकरण साफ तौर पर बनते हैं। बहराल एक दूसरे की मजबूती के लिए दोनों पूर्व सीएम खेमे से अपनी अपनी पार्टी में एक दूसरे के नाम प्रत्याशी के तौर पर प्रभावी ढंग से उछाले जा रहे हैं।वही राजनीतिज्ञ विश्लेषको का मानना है यदि कांग्रेस हरीश रावत को नैनीताल सीट से लोकसभा चुनाव का टिकट देती है तो हरिद्वार सीट पर कोई महिला प्रत्यासी भी चुनाव लड़ सकती है।ऐसे में हरीश रावत की नजदीकी माने जाने वाली कोई महिला ही इस सीट पर अपनी दावेदारी कर सकती है।जो डॉ निशंक को हरिद्वार लोकसभा सीट पर पटखनी दे सके।