November 22, 2024

आखिर कब तक झेलेंगे छोटे कारोबारी आर्थिक सुस्ती का दौर ?

आखरीआंख
कोई तीन साल पहले 8 नवंबर, 2016 को देश में 500 एवं 1000 रुपये के नोट बंद करके जो नोटबंदी की गई थी, उसका प्रभाव छोटे-उद्योग कारोबार पर स्पष्ट दिखायी दिया था। अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी के बाद देश में बड़ी संया में लोगों की क्रयशक्ति घटने से अर्थव्यवस्था में मांग गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अभी भी कुछ सीमा तक बना हुआ है। ऐसे में छोटे उद्योग कारोबार कई तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए दिखायी दे रहे हैं। सरकार भी इस बात को अनुभव कर रही है।
इसी परिप्रेक्ष्य में हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सरकार सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्योगों (एमएसएमई) की मुश्किलें कम करने के लिए शीघ्र ही राहत की घोषणा करने जा रही है। वस्तुत: इस समय आर्थिक सुस्ती से मुश्किलों का सामना कर रहे छोटे उद्योग-कारोबार क्षेत्र द्वारा कारोबार की मुश्किलें दूर करने हेतु बड़ी राहत की जरूरत अनुभव की जा रही है। छोटे उद्यमी-कारोबारी चाहते हैं कि उन्हें जीएसटी संबंधी मुश्किलों से राहत मिले, साथ ही तकनीकी विकास और नवाचार का भी उन्हें लाभ मिले। खासतौर से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी छोटे उद्यमी और कारोबारी बड़ी राहत की अपेक्षा कर रहे हैं। ऐसा किये जाने से देश के छोटे उद्योग कारोबार को नई मुस्कुराहट मिल सकेगी।
वस्तुत: इस समय आर्थिक सुस्ती से मुश्किलों का सामना कर रहे एमएसएमई कारोबारियों द्वारा एमएसएमई सेक्टर की परिभाषा बदलने और छोटे उद्योगों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करके तत्काल राहत मुहैया कराए जाने की अपेक्षा की जा रही है। अभी देश में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र दो ही श्रेणियां हैं। इससे बदहाल उद्योगों की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। छोटे उद्यमी व कारोबारी चाहते हैं कि इन्हें कई श्रेणियों में बांटा जाए ताकि इनकी दिक्कतें समय से पहचानी जा सकें। विभिन्न सेक्टर के हिसाब से श्रेणी बनाकर टर्नओवर की सीमा तय की जाए ताकि कारोबारियों को जीएसटी रिफंड के साथ दूसरी रियायतें तेजी से मिल सकें।
नि:संदेह छोटी और मझौली औद्योगिक-कारोबारी इकाइयां देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है। छोटे-छोटे उद्योग देश में विकास दर और रोजगार बढ़ाने के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। देश में कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार एमएसएमई क्षेत्र के द्वारा ही दिया जा रहा है। देश की जीडीपी में छोटे और मझोले वर्ग कारोबार का हिस्सा 29 फीसदी है। देश में एमएसएमई के तहत कोई 6.5 करोड़ उद्यम आते हैं जो 15 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। इसी वजह से सरकार ने मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में एफडीआई की सीमा 49 प्रतिशत ही रखी है।
छोटे और मध्यम उद्योग-कारोबार का देश के औद्योगिक उत्पादन में करीब 45 फीसदी एवं निर्यात में करीब 40 फीसदी योगदान है। आने वाले पांच सालों में सरकार उन्हें रियायतें देकर उनकी भागीदारी बढ़ाकर 50 फीसदी तक पहुंचाने के लक्ष्य पर काम कर रही है। लेकिन इस समय वैश्विक सुस्ती के कारण छोटे उद्योगों की अधिकांश इकाइयां महंगे कर्ज, बिजली समस्या, मांग में कमी, खरीदारों से भुगतान रुकने, टैक्सेशन, बैंकिंग, वित्तीय और विपणन संबंधी परेशानियों का सामना कर रही हैं। बड़े उद्योग और बड़ी पूंजी के उद्यमी अपनी प्रतिस्पर्धा क्षमता के आधार पर छोटे उद्यमियों को मैदान से बाहर करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
नि:संदेह आर्थिक सुस्ती के वर्तमान दौर में अब सरकार के द्वारा छोटी-मझौली इकाइयों की कारोबारी सुगमता के लिए देश की वित्तीय और औद्योगिक संस्थाओं को मजबूती देनी होगी। उद्योग-व्यापार में नवाचार को प्रोत्साहन दिया जाना होगा। अर्थव्यवस्था में नौकरशाही का हस्तक्षेप कम करना होगा। इन सबके साथ-साथ कारोबार से संबंधित अहम क्षेत्रों में अछा प्रदर्शन करना होगा। सुधारों के क्रियान्वयन को जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए बहुत तेजी से कदम बढ़ाने होंगे। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बड़े शहरों में तो कारोबार सुगमता का परिदृश्य दिखाई देता है लेकिन छोटी और मझौली इकाइयों के कारोबार के लिए छोटे शहर, कस्बों और गांवों में रायों को विशेष पहल करनी होगी। निश्चित रूप से इस समय जब देश के निर्यात पर डब्ल्यूटीओ की चुनौती सामने खड़ी हुई है, ऐसे में अब वक्त आ गया है कि व्यापार सुविधाएं और निर्यात का बुनियादी ढांचा बढ़ाकर लालफीताशाही में कमी लाई जाए, जिससे बिना सरकार के सब्सिडी संबंधी समर्थन के भी देश के छोटे निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ सके।
जरूरी है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का लाभ छोटे उद्योग-कारोबारियों को भी मिले। अभी यह बड़े शहरों और बड़े उद्योग-कारोबार तक सीमित दिखाई दे रहा है। 29 सितंबर, 2019 को विश्व बैंक के द्वारा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के परिप्रेक्ष्य में तैयार की गई टॉप-20 परफॉर्मर्स सूची में भारत को भी शामिल किया गया है। ऐसे में भारत दुनिया के उन 20 देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने कारोबार सुगमता के क्षेत्र में सबसे अधिक सुधार किए हैं। इसमें मई, 2019 को समाप्त हुए 12 महीने की अवधि के दौरान भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया गया है। भारत ने जिन चार क्षेत्रों में बड़े सुधार किए हैं वे हैं—पहला, बिजेनस शुरू करना; दूसरा, दिवालियापन का समाधान करनाÓ तीसरा, सीमा पार व्यापार को बढ़ाना तथा चौथा, कंस्ट्रक्शन परमिट्स में तेजी लाना।
इसी तरह बड़े उद्योग-कारोबार के परिप्रेक्ष्य में देश नवाचार और प्रतिस्पर्धा में अपनी रैंकिंग को सुधारता हुआ नजर आ रहा है। हाल ही में प्रकाशित बौद्धिक सपदा, नवाचार, प्रतिस्पर्धा और कारोबार सुगमता से संबंधित वैश्विक रिपोर्टों में भी भारत के सुधरते हुए प्रस्तुतीकरण की बात कही जा रही है। यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में घोषित विभिन्न प्रमुख कारोबार सूचकांकों के तहत प्रतिस्पर्धा, कारोबार एवं निवेश में सुधार का परिदृश्य भी दिखाई दे रहा है। नवाचार और प्रतिस्पर्धा के लाभ छोटे उद्योग-कारोबार को भी मिलने चाहिए।
निश्चित रूप से देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आर एंड डी) पर खर्च बढ़ाया जाना होगा। इसका लाभ छोटे उद्योग-कारोबार को भी मिलना चाहिए। रिजर्व बैंक के द्वारा छोटे उद्योग-कारोबार को यादा और सस्ता कर्ज दिए जाने की डगर भी आगे बढ़ानी होगी। आशा करें कि सूक्ष्म, छोटी और मझौली इकाइयों को यादा व सस्ते कर्ज की सुविधा के साथ जीएसटी राहत, तकनीकी उन्नयन राहत, श्रम कानूनों से राहत तथा निर्यात प्रोत्साहनों से ये इकाइयां आर्थिक सुस्ती के दौर से बाहर आ सकेंगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था का यह अहम क्षेत्र आय वृद्धि, रोजगार वृद्धि और अर्थव्यवस्था की चमकीली संभावनाओं को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकेगा।
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