उत्तराखण्ड से अमेरिका तक मशहूर हुए थारू जनजाति के बनाये गये मूंज के उत्पाद
देहरादून। हथकरघा और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए नावार्ड योजना के अन्तर्गत नवनिर्मित दून हाट में उत्तराखण्ड हथकरघा और हस्तशिल्प विकास परिषद् की ओर से कार्यशाला का आयोजन किया गया। एकीकृत विकास एवं प्रोत्साहन योजना के तहत पिछले तीन वर्षों से उत्तराखण्ड जनपदों के 15 अलग-अलग ब्लॉकों में कॉपर, रिंगाल, मूंज आदि के उत्पाद तैयार किये जाते हैं। यह योजना विशेष रूप से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए बनाई गई है। मंूज की डिजाइनर अभिरूचि चंदेल ने कार्यशाला के दौरान बताया कि इस वक्त उनके पास दो सौ से अधिक महिलाऐं व पुरूष मूंज, तांबा के उत्पादों को बनाते हैं। कार्यशाला में अभी 6महिलाऐं मूंज के उत्पाद बना रही हैं। उन्होंने बताया कि खटीमा ऊधमसिंह नगर में मूंज विशेष रूप से थारू जनजाति के लोग ही बनाते हैं। मूंज के उत्पादों में रोटी की टोकरी, प्लांटर, डस्टबिन, रूट बास्केट, वैलरी केंटेनर, टेबल मैट, पेपर वेट, कोस्टरस आदि बनाये जाते हैं। अभिरूचि ने बताया कि ये सारे उत्पाद 80 से 1500 रूपये में बिकते हैं। हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गयी, जहां उत्तराखण्ड के उत्पादों को एक पहचान मिली। ऐंपण की डिजाईनर मंमता जोशी ने कार्यशाला के दौरान बताया कि दून हाट प्रदर्शनी में हल्द्वानी से ऐंपण के उत्पाद बनाने वाली 8 महिलाऐं आयी हैं जो टेऊ, कोस्टरस, वॉल हैंगिंग, वास्केट, स्टॉल, कुसन, डायरी, फाईल फोल्डर आदि बना रही हैं जो प्रदर्शनी में 100 रूपये से लेकर 6000 रूपये तक में उपलब्ध हैं। दून हाट में राय के शिल्पियों द्वारा विकसित किये गये विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी 16 दिसंबर तक आयोजित की जा रही है, जिसमें हिमाद्री के साथ ही उत्तराखण्ड के सभी जनपदों के हथकरघा एवं हस्तशिल्प के स्टॉल लगाये गये हैं।