ब्रज विरासतः नए की चकाचौंध में विस्मृत हो रहीं प्राचीन स्मृतियां, पहचान से दूर हो रही मथुरा -प्राचीन मदिरों, यमुना के घाटों से दूर हो रहे श्रद्धालु -नवीन मंदिरों के प्रचार प्रसार का भी पड रहा है असर
मथुरा। मथुरा-वृन्दावन में कृष्ण काल के कितने ही चिन्ह स्थान और प्राचीन घाट काल के गाल में समा चुके हैं हमने आधुनिकता की दौड़ में अपनी प्राचीन स्मृतियों और पहचान को नष्ट कर दिया है। बहुत से ऐसे स्थान हैं जिनका अब केवल नाम ही बचा है निशानियां भी नष्ट हो चुकी हैं शायद ही लोग अब बता पायें कि प्राचीन घाट और एतिहासिक स्थान यहां कभी थे।
मथुरा में कुछ सुप्रसिद्ध और प्राचीन घाट आज भी मौजूद हैं बारह घाट दक्षिण कोटि के और बारह घाट उत्तर कोटि के हैं। मथुरा की परिक्रमा हर एकादशी और अक्षयनवमी को सामुहिक रूप से दी जाती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा एक साथ भी दी जाती है, कोई-कोई तो गरुडगोंविन्द जी को भी शामिल कर लेते हैं। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भी रात्रि में परिक्रमा दी जाती है। इसको वन-बिहार की परिक्रमा कहते हैं। परिक्रमा के मार्ग पर गाना-बजाना भी होता था, कहीं-कहीं नाटक या नौटंकी जैसे अभिनय भी किये जाते थे। ऐसी मान्यता है कि दाऊजी ने द्वारका से आकर वसन्त ऋतु के दो मास ब्रज में रहकर जो अपने भक्तजनों को सुख दिया था और वन-बिहार किया था एवं यमुना का पूजन किया था, यह उसी लीला की स्मृति है। परिक्रमा में जो स्थान आते हैं उसमें यहां के चौबीस घाट भी आ जाते हैं।
विश्राम घाट, गतश्रमनारायण मन्दिर, कंसखार, सतीका बुर्ज, चर्चिकादेवी, योगघाट, पिप्पलेश्वर महादेव, योगमार्गवटुक, प्रयागघाट, वेणीमाधव का मंदिर, श्यामाघाट, श्यामजी का मंदिर, दाऊजी, मदनमोहनजी, गोकुलनाथ जी का मंदिर, कनखल तीर्थ, तिन्दुक तीर्थ (यह आजकल नष्ट हो चुके हैं इनका नामोनिशान मौजूद नहीं है)। सूर्यघाट, धु्रवक्षेत्र, ध्रुवघाट यहां पर तीर्थश्राद्ध हुआ करते थे। ध्रुवटीला, सप्तऋर्षि टीला (इसके भीतर से यज्ञ भस्म निकलती है- यहां सप्तर्षियों के दर्शन हैं), कोटितीर्थ, कंस की नगरी में रावणटीला के नाम से भी स्थान था जो आज नष्ट हो चुका है, बुद्धतीर्थ, बलिटीला, यहां भी यज्ञ भस्म निकलने की वात आज भी लोग बताते हैं। यहीं पर बलिराजा और वामन जी के दर्शन मिलते थे। रंगभूमि (कुबलयापीड स्थान, धनुष भङ्ग स्थान आज कहीं खो गये हैं, चाणूरमुष्टिक वध स्थान का भी आज कहीं पता ही नहीं है, जिसे लोग आज भी कंस टीला के नाम से जानते हैं, यह प्राचीन प्रतीत नहीं होता है।
प्राचीन रंगेश्वर महादेव आज भी लोगों के मन में बसते हैं साबन के सोमवार को यहां बड़ी भींड़ उमडती है। सप्तसमुद्रकूप, शिवताल यह राजा पटनीमल का बनवाया हुआ है पहले यह एक साधारण कुण्ड हुआ करता था आज बहुत ही सुन्दर तथा पत्थरों का बना विशाल कुण्ड मौजूद है। बलभद्र कुण्ड, भूतेश्वर महादेव भी अभी तक पूजे जाते हैं, बड़े ही चमत्कारी महादेव हैं, यहीं पर योगमाया का मंदिर भी मौजूद है यह पाताल देवी के नाम से प्रसिद्ध है। पोतरा कुण्ड जो विशाल कुण्ड के रूप में आज भी मथुरा के प्राचीन इतिहास का साक्षी बना हुआ है इस कुण्ड़ को वर्षों वाद सजाया संवारा गया है आज इस कुण्ड को एल ई डी लाइट की सजावट से सजाया गया है रात्रि में यह तीर्थ यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।, इसी के निकट ज्ञानवापी भी है विशाल जल श्रोत का एक कुंआ मौजूद है विवाद के चलते इस पर मुसलमानों ने कब्जा किया हुआ है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान विशाल प्रांगण में अवस्थित है जहां लाखों तीर्थ यात्री भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं, इसके निकट ही प्राचीन केशवदेव का मंदिर भी है जिसमें आकर्षक चर्तुभुज प्रतिमा काले पत्थर की स्थापित है, कृष्णकूप, कुब्जा कूप, इनका नाम ही शेष रह गया है आसपास विशाल कॉलोनियों के निर्माण ने इस ऐतिहासिक धरोहरों को या तो नष्ट कर दिया है या यह अपनी पहचान आज के आधुनिक युग के विकास में कहीं खो चुके हैं। महाविद्या का प्राचीन मंदिर आज भी बड़ी उचाई पर स्थित है जिसके नाम से ही महाविद्या कॉलोनी का विकास हुआ है। इन प्राचीन धरोहरों को नष्ट करने में मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण का हाथ भी कुछ कम नहीं है। विकास के नाम पर अति प्राचीन व एतिहासिक धरोहरों को नष्ट भष्ट किया जा चुका है कुछ का तो नामो निशान ही आज मिट गया है। सरस्वती नाला, सरस्वती कुण्ड, सरस्वती देवी का प्राचीन मंदिर पर भी आज व्यक्तिगत लोगों का कब्जा हो चुका है। चामुण्डा देवी का प्राचीन मंदिर भी मौजूद है यहां वर्ष भर देवी भक्तों का तांता लगा रहता है। इसके आसपास की जमीनों पर कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं। उत्तरकोटि के तीर्थों में गणेश टीला आज भी मौजूद है, मनमोहक गणेश जी की प्रतिमा है। गणेशजी के नाम से गणेश टीला के नीचे की जमीनों पर कब्जा होता चला गया यमुना के खादरों और डूब क्षेत्र को भूमाफियाओं ने बेच कर अवैध कॉलोनियों का निमार्ण कर दिया, जहां बहुत बड़ी आवादी के बस जाने के कारण प्रतिवर्ष यमुना जल स्तर के बढ जाने की स्थिति में जिला प्रशासन को इन्हें हटाने में बड़ी मेहनत करनी पडती है।, गोकर्णेश्वर महादेव भी अतिप्राचीन महादेव में से एक हैं यहां आदमकद भोलेनाथ की प्रतिमा के दर्शन होते हैं शायद ही भोलेनाथ का यह स्वरूप अन्यत्र कहीं मिले, मगर इस मंदिर के साथ लगी सारी सम्पत्ति भी बेची जा चुकी है सिर्फ मंदिर का भाग ही बचा है बाकी आसपास की भूमि पर कॉलोनियां, मकान आदि का निमार्ण हो चुका है। गौतम ऋर्षि की समाधि का आज नामो निशान मिट चुका है कहां पर स्थित है, कहा नहीं जा सकता है। इसी प्रकार से सेनापति का घाट लुप्त हो चुका है। सरस्वती संगम और दशाश्वमेध घाट, अम्बरीष टीला जाने कहां गुम हो गये आज लोगों के स्मृति पटल से यह स्थान गायब हो चुके हैं। चक्रतीर्थ घाट जो प्राचीन घाटों में गिना जाता है। यमुना सौंदर्यीकरण और यमुना शुद्धिकरण के नाम पर यमुना के प्राचीन घाटों को किस प्रकार से नदी की धारा से दूर किया जा रहा है यह जिला प्रशासन से लेकर मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण व सिचाई विभाग और मथुरा वृन्दावन नगर निगम सहित पर्यटन विभाग ने भी आँखें मूंद ली हैं। यमुना किनारे के कुछ घाट आज सिर्फ नाम के लिए जिन्दा हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया है।
मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर पड़ने वाला चक्रतीर्थ घाट यमुना सौंदर्यीकरण और शुद्धिकरण की भैंट चढ़ चुका है। कभी इस घाट का बहुत महत्व हुआ करता था यहां शहर से आने वाले शवों को विश्राम कराया जाता था तथा यहां पिण्ड दान की क्रिया सम्पन्न करा कर यमुना के किनारे शवों का दाहसंस्कार किया जाता था। यहां वर्षों पुरानी परम्परा मसानी मोक्षधाम के बनने के वाद समाप्त हो गयी। यहां आज भी वह पत्थर मौजूद है जिसमें शवों को विश्राम हेतु रखा जाता था। इतना प्रचीन घाट अपने अतीत की कहानियां स्वयं वयां कर रहा है। नक्काशी दार पत्थरों पर कारीगरी आज भी घाट पर मौजूद है।
इस घाट के ठीक सामने से यमुना की तरफ एक षडयन्त्र के तहत पक्की सड़क को बनाया गया है कभी इस घाट तक यमुना नदी का जल रहा करता था। घाट के वांये और दायी तरफ यमुना के किनारे अवैध निर्माण कर लिये गये हैं डोरी, निवाड के कारखानों की दीवारे यमुना की तरफ बढ़ाई जा चुकी हैं दायी तरफ के मार्ग भी अतिक्रमण की भैंट चढ़ चुके है। इस ओर नगर निगम का ध्यान भी नहीं है तथा विकास प्राधीकरण भी इस दिशा में अपनी आंखें मूंदे बैठा है।
कृष्ण गंगा घाट बहुत ही आकर्षक घाट है यहां की तीन छतरियां पत्थरों की बनी हैं। यहीं पर महर्षि वेदव्यास जी का स्थान भी है बताया जाता है कि इसी स्थान पर वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की थी। यह स्थान भी यमुना को घाटों से अलग किये जाने के कारण आज उपेक्षित हो गये हैं। कालिंजर महादेव प्राचीन महादेवों में से एक हैं इस मंदिर के बाहर आकर्षक पत्थरों को काट कर बना नक्काशीदार दरवाजा देखने लायक है। सोमतीर्थ भी अब लुप्त हो चुकी है गौघाट आज अतिक्रमण और यमुना नदी के घाटों से चले जाने के कारण सिसकियां ले रहा है।, कंसटीला का जार्णाेद्धार किये जाने के कारण अभी बचा हुआ है।, घण्टाकर्ण, मुक्ति तीर्थ, ब्रह्म घाट, वैकुण्ठ घाट, धारा पतन, इनका कोई पता ही नहीं है कि यह कहां हैं, वसुदेव घाट जो आज स्वामी घाट के नाम से जाना जाता है। असिकुण्डा घाट, वाराह क्षेत्र के वाद सड़क के दायीं ओर द्वारकाधीश का विशाल मंदिर मथुरा के हृदय स्थल में स्थित है यह राजाधिराज द्वारकाधीश पुष्टिमार्गीय बल्लभकुल सम्प्रदाय का प्राचीन मंदिर है यहां प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन करने आते हैं। मणिकर्णका घाट, महाप्रभुजी की बैठक, विश्राम घाट तीर्थ स्थल है यहां पर यमुना जी में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है। यह सभी घाट मथुरा की परिक्रमा के स्थान हैं। इनमें से अधिकांश स्थान उत्तर और दक्षिण के परिक्रमा के मार्ग से छूट जाते हैं।
आज अधिकांश पौराणिक घाट व ऐतिहासिक स्थान ऐसे हैं जो समय के साथ-साथ अपना नाम और निशान को खो चुके हैं। मंदिरों की तमाम जमीनें बेची जा चुकी हैं। साथही यमुना के घाटों के किनारे से यमुना को एक षडयंत्र के तहत हटाया जा रहा है। लगातार हम अपने प्राचीन इतिहास को नष्ट भष्ट कर रहे हैं। वर्षों पुरानी सभ्यता तथा उसके चिन्हों को समाप्त करके हम अपनी पहचान भी खो रहे हैं। जिला प्रशासन सहित मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण, मथुरा-वृन्दावन नगर निगम तथा पर्यटन विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
मथुरा में कुछ सुप्रसिद्ध और प्राचीन घाट आज भी मौजूद हैं बारह घाट दक्षिण कोटि के और बारह घाट उत्तर कोटि के हैं। मथुरा की परिक्रमा हर एकादशी और अक्षयनवमी को सामुहिक रूप से दी जाती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा एक साथ भी दी जाती है, कोई-कोई तो गरुडगोंविन्द जी को भी शामिल कर लेते हैं। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भी रात्रि में परिक्रमा दी जाती है। इसको वन-बिहार की परिक्रमा कहते हैं। परिक्रमा के मार्ग पर गाना-बजाना भी होता था, कहीं-कहीं नाटक या नौटंकी जैसे अभिनय भी किये जाते थे। ऐसी मान्यता है कि दाऊजी ने द्वारका से आकर वसन्त ऋतु के दो मास ब्रज में रहकर जो अपने भक्तजनों को सुख दिया था और वन-बिहार किया था एवं यमुना का पूजन किया था, यह उसी लीला की स्मृति है। परिक्रमा में जो स्थान आते हैं उसमें यहां के चौबीस घाट भी आ जाते हैं।
विश्राम घाट, गतश्रमनारायण मन्दिर, कंसखार, सतीका बुर्ज, चर्चिकादेवी, योगघाट, पिप्पलेश्वर महादेव, योगमार्गवटुक, प्रयागघाट, वेणीमाधव का मंदिर, श्यामाघाट, श्यामजी का मंदिर, दाऊजी, मदनमोहनजी, गोकुलनाथ जी का मंदिर, कनखल तीर्थ, तिन्दुक तीर्थ (यह आजकल नष्ट हो चुके हैं इनका नामोनिशान मौजूद नहीं है)। सूर्यघाट, धु्रवक्षेत्र, ध्रुवघाट यहां पर तीर्थश्राद्ध हुआ करते थे। ध्रुवटीला, सप्तऋर्षि टीला (इसके भीतर से यज्ञ भस्म निकलती है- यहां सप्तर्षियों के दर्शन हैं), कोटितीर्थ, कंस की नगरी में रावणटीला के नाम से भी स्थान था जो आज नष्ट हो चुका है, बुद्धतीर्थ, बलिटीला, यहां भी यज्ञ भस्म निकलने की वात आज भी लोग बताते हैं। यहीं पर बलिराजा और वामन जी के दर्शन मिलते थे। रंगभूमि (कुबलयापीड स्थान, धनुष भङ्ग स्थान आज कहीं खो गये हैं, चाणूरमुष्टिक वध स्थान का भी आज कहीं पता ही नहीं है, जिसे लोग आज भी कंस टीला के नाम से जानते हैं, यह प्राचीन प्रतीत नहीं होता है।
प्राचीन रंगेश्वर महादेव आज भी लोगों के मन में बसते हैं साबन के सोमवार को यहां बड़ी भींड़ उमडती है। सप्तसमुद्रकूप, शिवताल यह राजा पटनीमल का बनवाया हुआ है पहले यह एक साधारण कुण्ड हुआ करता था आज बहुत ही सुन्दर तथा पत्थरों का बना विशाल कुण्ड मौजूद है। बलभद्र कुण्ड, भूतेश्वर महादेव भी अभी तक पूजे जाते हैं, बड़े ही चमत्कारी महादेव हैं, यहीं पर योगमाया का मंदिर भी मौजूद है यह पाताल देवी के नाम से प्रसिद्ध है। पोतरा कुण्ड जो विशाल कुण्ड के रूप में आज भी मथुरा के प्राचीन इतिहास का साक्षी बना हुआ है इस कुण्ड़ को वर्षों वाद सजाया संवारा गया है आज इस कुण्ड को एल ई डी लाइट की सजावट से सजाया गया है रात्रि में यह तीर्थ यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।, इसी के निकट ज्ञानवापी भी है विशाल जल श्रोत का एक कुंआ मौजूद है विवाद के चलते इस पर मुसलमानों ने कब्जा किया हुआ है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान विशाल प्रांगण में अवस्थित है जहां लाखों तीर्थ यात्री भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं, इसके निकट ही प्राचीन केशवदेव का मंदिर भी है जिसमें आकर्षक चर्तुभुज प्रतिमा काले पत्थर की स्थापित है, कृष्णकूप, कुब्जा कूप, इनका नाम ही शेष रह गया है आसपास विशाल कॉलोनियों के निर्माण ने इस ऐतिहासिक धरोहरों को या तो नष्ट कर दिया है या यह अपनी पहचान आज के आधुनिक युग के विकास में कहीं खो चुके हैं। महाविद्या का प्राचीन मंदिर आज भी बड़ी उचाई पर स्थित है जिसके नाम से ही महाविद्या कॉलोनी का विकास हुआ है। इन प्राचीन धरोहरों को नष्ट करने में मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण का हाथ भी कुछ कम नहीं है। विकास के नाम पर अति प्राचीन व एतिहासिक धरोहरों को नष्ट भष्ट किया जा चुका है कुछ का तो नामो निशान ही आज मिट गया है। सरस्वती नाला, सरस्वती कुण्ड, सरस्वती देवी का प्राचीन मंदिर पर भी आज व्यक्तिगत लोगों का कब्जा हो चुका है। चामुण्डा देवी का प्राचीन मंदिर भी मौजूद है यहां वर्ष भर देवी भक्तों का तांता लगा रहता है। इसके आसपास की जमीनों पर कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं। उत्तरकोटि के तीर्थों में गणेश टीला आज भी मौजूद है, मनमोहक गणेश जी की प्रतिमा है। गणेशजी के नाम से गणेश टीला के नीचे की जमीनों पर कब्जा होता चला गया यमुना के खादरों और डूब क्षेत्र को भूमाफियाओं ने बेच कर अवैध कॉलोनियों का निमार्ण कर दिया, जहां बहुत बड़ी आवादी के बस जाने के कारण प्रतिवर्ष यमुना जल स्तर के बढ जाने की स्थिति में जिला प्रशासन को इन्हें हटाने में बड़ी मेहनत करनी पडती है।, गोकर्णेश्वर महादेव भी अतिप्राचीन महादेव में से एक हैं यहां आदमकद भोलेनाथ की प्रतिमा के दर्शन होते हैं शायद ही भोलेनाथ का यह स्वरूप अन्यत्र कहीं मिले, मगर इस मंदिर के साथ लगी सारी सम्पत्ति भी बेची जा चुकी है सिर्फ मंदिर का भाग ही बचा है बाकी आसपास की भूमि पर कॉलोनियां, मकान आदि का निमार्ण हो चुका है। गौतम ऋर्षि की समाधि का आज नामो निशान मिट चुका है कहां पर स्थित है, कहा नहीं जा सकता है। इसी प्रकार से सेनापति का घाट लुप्त हो चुका है। सरस्वती संगम और दशाश्वमेध घाट, अम्बरीष टीला जाने कहां गुम हो गये आज लोगों के स्मृति पटल से यह स्थान गायब हो चुके हैं। चक्रतीर्थ घाट जो प्राचीन घाटों में गिना जाता है। यमुना सौंदर्यीकरण और यमुना शुद्धिकरण के नाम पर यमुना के प्राचीन घाटों को किस प्रकार से नदी की धारा से दूर किया जा रहा है यह जिला प्रशासन से लेकर मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण व सिचाई विभाग और मथुरा वृन्दावन नगर निगम सहित पर्यटन विभाग ने भी आँखें मूंद ली हैं। यमुना किनारे के कुछ घाट आज सिर्फ नाम के लिए जिन्दा हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया है।
मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर पड़ने वाला चक्रतीर्थ घाट यमुना सौंदर्यीकरण और शुद्धिकरण की भैंट चढ़ चुका है। कभी इस घाट का बहुत महत्व हुआ करता था यहां शहर से आने वाले शवों को विश्राम कराया जाता था तथा यहां पिण्ड दान की क्रिया सम्पन्न करा कर यमुना के किनारे शवों का दाहसंस्कार किया जाता था। यहां वर्षों पुरानी परम्परा मसानी मोक्षधाम के बनने के वाद समाप्त हो गयी। यहां आज भी वह पत्थर मौजूद है जिसमें शवों को विश्राम हेतु रखा जाता था। इतना प्रचीन घाट अपने अतीत की कहानियां स्वयं वयां कर रहा है। नक्काशी दार पत्थरों पर कारीगरी आज भी घाट पर मौजूद है।
इस घाट के ठीक सामने से यमुना की तरफ एक षडयन्त्र के तहत पक्की सड़क को बनाया गया है कभी इस घाट तक यमुना नदी का जल रहा करता था। घाट के वांये और दायी तरफ यमुना के किनारे अवैध निर्माण कर लिये गये हैं डोरी, निवाड के कारखानों की दीवारे यमुना की तरफ बढ़ाई जा चुकी हैं दायी तरफ के मार्ग भी अतिक्रमण की भैंट चढ़ चुके है। इस ओर नगर निगम का ध्यान भी नहीं है तथा विकास प्राधीकरण भी इस दिशा में अपनी आंखें मूंदे बैठा है।
कृष्ण गंगा घाट बहुत ही आकर्षक घाट है यहां की तीन छतरियां पत्थरों की बनी हैं। यहीं पर महर्षि वेदव्यास जी का स्थान भी है बताया जाता है कि इसी स्थान पर वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की थी। यह स्थान भी यमुना को घाटों से अलग किये जाने के कारण आज उपेक्षित हो गये हैं। कालिंजर महादेव प्राचीन महादेवों में से एक हैं इस मंदिर के बाहर आकर्षक पत्थरों को काट कर बना नक्काशीदार दरवाजा देखने लायक है। सोमतीर्थ भी अब लुप्त हो चुकी है गौघाट आज अतिक्रमण और यमुना नदी के घाटों से चले जाने के कारण सिसकियां ले रहा है।, कंसटीला का जार्णाेद्धार किये जाने के कारण अभी बचा हुआ है।, घण्टाकर्ण, मुक्ति तीर्थ, ब्रह्म घाट, वैकुण्ठ घाट, धारा पतन, इनका कोई पता ही नहीं है कि यह कहां हैं, वसुदेव घाट जो आज स्वामी घाट के नाम से जाना जाता है। असिकुण्डा घाट, वाराह क्षेत्र के वाद सड़क के दायीं ओर द्वारकाधीश का विशाल मंदिर मथुरा के हृदय स्थल में स्थित है यह राजाधिराज द्वारकाधीश पुष्टिमार्गीय बल्लभकुल सम्प्रदाय का प्राचीन मंदिर है यहां प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन करने आते हैं। मणिकर्णका घाट, महाप्रभुजी की बैठक, विश्राम घाट तीर्थ स्थल है यहां पर यमुना जी में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है। यह सभी घाट मथुरा की परिक्रमा के स्थान हैं। इनमें से अधिकांश स्थान उत्तर और दक्षिण के परिक्रमा के मार्ग से छूट जाते हैं।
आज अधिकांश पौराणिक घाट व ऐतिहासिक स्थान ऐसे हैं जो समय के साथ-साथ अपना नाम और निशान को खो चुके हैं। मंदिरों की तमाम जमीनें बेची जा चुकी हैं। साथही यमुना के घाटों के किनारे से यमुना को एक षडयंत्र के तहत हटाया जा रहा है। लगातार हम अपने प्राचीन इतिहास को नष्ट भष्ट कर रहे हैं। वर्षों पुरानी सभ्यता तथा उसके चिन्हों को समाप्त करके हम अपनी पहचान भी खो रहे हैं। जिला प्रशासन सहित मथुरा वृन्दावन विकास प्राधीकरण, मथुरा-वृन्दावन नगर निगम तथा पर्यटन विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए।