October 7, 2024

कोट भ्रामरी मेला: लावारिस भगनॉल गिन रहे अपनी आखरी साँसे

बागेश्वर ( अर्जुन राणा गरुड़ ) जनपद के कत्यूर घाटी में स्तिथ माँ कोटभ्रमरी का ऐतिहासिक मन्दिर न केवल यहाँ के निवासियों का आस्था का केन्द्र विंदु है वरन यहाँ लगने वाला मेला समूचे कुमाऊँ गढ़वाल व गेवाड़ घाटी के लोगो का एक व्यापारिक मेले के रूप में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता हैं।
इस मेले में हर क्षेत्र के बुजुर्गों की एक ही इच्छा होती है कि यदि मेले में जाया जाता तो वहाँ से कुछ रिंगाल के बने घरेलू उत्पाद जैसे सूप डलिया या मोहट आदि लाये जाते और वहाँ पर अपनी रात बिताने में चार भगनोल भी सुन लिए जाते।

जहाँ एकओर आज के इस आधुनिकता के सराबोर इस युग मे स्टार नाईट व हाई फाई म्यूजिक सिस्टम ने आज की युवा पीढ़ी को अपने डिस्को के मकड़जाल में लपेट लिया है वहीँ दूसरी ओर इस मेले में आज भी डिग्गी धार के नाम से मशहूर भगनोल मैदान में रात भर दूर 2 जिलो से आये पुराने बुजुर्ग भगनोल कलाकार हमारी नई व पुरानी पीढ़ी को अपने विशिष्टता की बदौलत सम्मोहित कर पूरी रात मनोरंजन करती है।
विगत वर्षों की भांति इस वर्स भी यहाँ पर इन कलाकारों की काफी भीड़भाड़ रही । चखुटिया से आये कुछ कलाकार तो गाड़ी से डंगोली सड़क में उतरते ही आते समय मन्दिर तक अपने साजबाज चिमटा हुड़का व मंजूरों की धुन पर गाते 2 भाव विभोर होकर पहुँचे।
अब बात ये कलाकारों के रात के इनके कार्यक्रम की करे तो यहाँ सर्वप्रथम राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा का जिक्र किये बिना यह अधूरा रहेगा। जिनके एक सकारात्मक प्रयास से इन कलाकारों के लिए शानदार मंच उपलब्ध हो पाया हैं। इससे पहले ये कलाकार रात भर खुले आसमान के नीचे घुप्प अंधेरे में अपनी रात गुजरने का रातभर इंतजार करते थे।
यहां आपको यह भी बताते चले कि हमारी गायकी की सांस्कृतिक परम्परा में भगनोल विधा आज प्रायः लगभग अपनी विलुप्ति के कगार पर पहुच चुकी है। इनके पुराने कलाकार अब करीब 10% ही बच पाए है। इनमे से भी कुछ अब उम्र के तकाजे की वजह से मेला आ पाने में असमर्थ हो गए है।
अब बात इस बर्ष के भगनोल सन्ध्या की करे तो विगत वर्षो की ही तरह इस साल भी दानपुर अल्मोड़ा चौखुटिया गेवाड़ घाटी गढ़वाल सहित अनेको जगहों से ये सभी कलाकारों ने अपना जमघट लगाया था। जिनमे अकेले गेवाड़ घाटी से 3 बस भरकर ये लोग मेले में पहुँचे थे ।
लेकिन जैसे ही रात्रि 8 बजे के करीब ये बुजुर्ग कलाकार अपने मंच पर कार्यक्रम का श्री गणेश करने लगे तो इन्हें शराबियों की एक टोली द्वारा बार 2 इनके बीच मे नाचकर व्यवधान पहुचाया गया। पुनः कुछ समय बाद शुरू हुए भगनोल में एक दूसरे की टोकाटाकी पर ये सभी कलाकार काफी रुष्ट नजर आए।
इनकी नाराज़गी वहाँ पर वाजिब भी लगी जब गेवाड़ के एक बहुत बुजुर्ग कलाकार भवान राम ने बताया कि यहाँ पर हमें अपना गाना गाने में काफी डिस्टर्ब किया जा रहा है। एक अन्य गायक कुंदन सिंह ने बताया कि मेला कमेटी ने यहाँ पर मात्र दो कम वाट के बल्ब लगाकर अपनी इतिश्री कर ली हैं
यहाँ आपकी बताते चले कि ये कलाकार जी कुछ भी बोल रहे थे बगल में चल रही स्टार नाईट के म्यूजिक व साउंड ने इनकी आवाज पर नकेल कस रखी थी।
वहाँ मौजूद इस बदइंतजामी पर मुझे एक घरेलू कहावत याद आ रही थी कि इसे कहते है शिवजी को बताशा नही औऱ भूत को बकरा?

वहाँ मौजूद कुछ महिला गायिकाओ ने बताया कि वह बहु बहुत कुछ यहाँ पर गाना चाहती है। लेकिन यहाँ हो रही अव्यवस्था के चलते उसे गाने का समय ही नही दिया जा रहा है।
वैसे मेला कमेटी के लिए आखरीआंख का एक सुझाव हैं कि भविष्य में भगनोल ग्राउंड में कमेटी अपने 2 या 4 कार्यकर्ता रखकर वहाँ पर बारी 2 से उनका कार्यक्रम एक साउंड सिस्टम लगाकर कराए तो यह विद्या अब भी काफी आगे बढ़ सकती है।
लेकिन बार 2 जनता , दर्शको व भगनॉलियो के इस माँग के बावजूद भी मेला कमेटी द्वारा उनकी ओर जरा भी ध्यान न दिए जाने से तो यही समझ मे आता हैं कि जैसे वो कह रहे हो भगनॉल जाये भाड़ में हमे तो तो केवल अपने स्टार कलाकारों की ही जरूरत है।
बहुत से दर्शकों से जब मैंने इस बाबत बात की तो लगभग सभी का एक ही जबाब था कि यदि मेला कमेटी यहाँ की व्यवस्था को दुरुस्त के दे तो कमेटी की स्टार नाइट इसके सामने धूमिल पड़ सकती है।
वैसे भी कोटभ्रमरी मेले की प्राचीन जान भगनोल ही रहे हैं। लेकिन आज मेला कमेटी अपने स्टार नाईट को तो काफी हसीन व रंगीन बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ रही ओर बेचारे भगनोलियो को आज भी राम भरोसे ही छोड़ दिया जा रहा है।
हालांकि इसवर्ष की स्टार नाईट की बात करे तो दर्शको के अनुसार इस साल स्टार कम व नाईट ही ज्यादा दिख रही थी। व उनके कार्यक्रमो के दौरान आधे से ज्यादा दर्शक पूरे मैदान में अपने मे मस्त यंत्र तत्र सर्वत्र नाचते नजर आ रहे थे जिनकी वजह से हजारों दर्शकों को स्टेज के दर्शन तक नही हो पा रहे थे।
जिसमें काफी संख्या में महिलाओं को वापस मुड़ना पड़ रहा था। मेला कमेटी के वालंटियर्स उन्हें कन्ट्रोल कर पाने में असहजता महसूस कर रहे थे।