कैसे सुधरे हमारी अर्थव्यवस्था?
आखरीआंख
दो माह पहले जब 23 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शानदार जीत हासिल करके दूसरी बार सत्तासीन हुए तो मध्य वर्ग ही नहीं, इक्विटी निवेशक खासकर कारोबारी घराने झूम उठे।
उन्हें उमीद थी कि ऐतिहासिक विजय के पश्चात बजट भी ऐतिहासिक होगा। पहली नजर में ऐसा दिखा भी कि भविष्योन्मुखी बजट है। लेकिन तमाम वगरे की खुशियां काफूर करने वाला निकला। आर्थिक सुस्ती के लक्षण दिख ही रहे हैं। आप कुछेक घंटे सोशल मीडिया पर गुजार लें। संपत्तियों के नुकसान, छीजते रोजगार और विफल होते कारोबारों की तमाम कहानियों की बानगी देखने को मिलेंगी। ये सब सरकार की नीतियों में खामियों और प्रतिगामी कदमों का नतीजा हैं। मैंने इतनी जल्दी और आसानी से शानदार जीत की चमक खोती सरकार नहीं देखी। शेयर बायबैक, एफपीआई ट्रस्टों और अति-धनाढ्य वर्ग के लिए कराधान का दायरा बढ़ाया जाना निवेश के वातावरण को धक्का पहुंचाने वाला साबित हुआ। इक्विटी बाजार में धन की आवक को झटका लगा। बाजार पूंजीकरण में खासे क्षरण के बावजूद सरकार समीक्षा के बजाय कर संग्रहण के मामले में यादा आक्रामक है। आंकड़ों को देखें तो निटी का बेंचमार्क सूचकांक 9 प्रतिशत तक गिर गया है, जबकि मिडकैप और स्मॉल कैप सूचकांक में 13 से 15 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज हुई है।
एक सौ 34 करोड़ की आबादी का अपना देश आज लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है। देश में 150 करोड़ बैंक खाते हैं। एक सौ पचास करोड़ की मार्केट कैप है। अलबत्ता, डिमैट खातों की संया मात्र 3.5 करोड़ है। जनसंया का 8 प्रतिशत हिस्सा ही इक्विटी तथा इक्विटी-संबंधित क्षेत्रों में संलग्न है, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा करीब 35-45त्न है। जीडीपी और मार्केट कैप का अनुपात भी एक पैमाना है, जिससे किसी देश के वित्तीय क्षेत्र की मजबूती का पता चलता है। सिंगापुर, जापान, स्विटजरलैंड, अमेरिका, कनाडा और मलयेशिया में यह 100 से यादा है, जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी तथा नाव्रे जैसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों में 65-75 के आसपास है। भारत के मामले में यह 100त्न से थोड़ा सा ही कम है यानी हम विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं।
विमुद्रीकरण का एक लाभ यह भी हुआ कि इक्विटी क्षेत्र में धन का प्रवाह बढ़ा। नियामक, शेयर बाजारों, उद्योग संगठनों, वित्तीय मीडिया के साथ ही फंड हाउसेज जैसे बाजार प्रतिभागियों के प्रयासों के चलते निवेशकों में जागरूकता बढ़ी है। इक्विटी संस्कृति के उभार में मदद मिल रही है। अलबत्ता, घरेलू बचत का मात्र 5त्न इक्विटी बाजार में पहुंचता है, जो अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले खासा कम है। अन्य उभरते बाजारों में घरेलू बचत का 10-15त्न इक्विटी बाजार में पहुंचता है। इक्विटी बाजार में वित्त एवं निवेश महत्त्वपूर्ण कारोबार है। इसलिए वित्त मंत्री को बजट तैयार करने से पूर्व प्रमुख बिंदुओं पर विचार करना चाहिए था। वित्तीय बाजारों के अलावा सरकार की भी इक्विटी संस्कृति को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एफआईआई, बिग फंड मैनेजर और एचएनआई निवेशकों के साथ बैठक के उपरांत सरकार को लगता है कि वित्तीय बाजार खासी चांदी काट रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत सिरे से भिन्न है। स्मॉल और मिड कैप कंपनियां एलटीसीजी कर लगाए जाने से खासी दिक्कत में हैं। विभिन्न दूसरे प्रतिगामी और सत विनियमनों से भी वे हलकान हैं। शेयर बाजार से अर्थव्यवस्था की सेहत की झलक मिलती है। कंपनियों द्वारा पूंजी जुटाने का भी शेयर बाजार प्रमुख जरिया हैं। सरकार एलटीसीजी, लाभांश और बायबैक पर कराधान, इक्विटी यूचुअल फंडों पर दोहरे कराधान जैसे प्रतिगामी उपायों से राजस्व जुटा रही है। हालिया बजट में ट्रस्टों के रूप में पंजीकृत एफपीआई पर सरकार ने बेहद यादा उपकर लगा दिया है, जिससे इक्विटी बाजार में धड़ाधड़ बिकवाली शुरू हो गई। बजट के बाद से अभी तक विदेशी खिलाड़ी लगभग 16 हजार करोड़ रुपये बाजार से निकाल कर जा चुके हैं। ऐसे अल्पकालिक लाभार्जक उपायों से एक तो सरकार को यादा राजस्व नहीं मिल रहा, दूसरे इक्विटी निवेशकों को 12 लाख करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है। फंड के रूप में पंजीकृत एफपीआई के मामले में सरकार को ट्रस्ट को कॉरपोरेट में तब्दील करने के लिए विशेष व्यवस्था करनी चाहिए थी। इससे विदेशी निवेशकों की धारणा मजबूत होती। वे इक्विटी बाजार से धन निकालने को उद्धत न होते।
अब सरकार को मांग और उपभोग बढ़ाने के लिए नीतिगत उपाय करने चाहिए। कुछ प्रोत्साहक पैकेज लाने चाहिए ताकि रोजगार सृजन, प्रति व्यक्ति आय और निवेश योग्य घरेलू अधिशेष में इजाफा हो सके। कानून दुरुस्त करने होंगे। विशेष प्रोत्साहन देने होंगे। कर-कटौती और निवेशकों को विशेष छूट देनी होगी ताकि दीर्घकालिक इक्विटी निवेश बढ़ सके। सरकार चाहती है कि सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये उगाहे जाएं। लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए लगता है कि लक्ष्य हासिल करने में मुश्किल होगी। इसलिए यादा प्रेरक उपाय करने होंगे। विनिवेशीकरण लक्ष्य को हासिल करने के लिए निवेशकों की धारणा को मजबूत करना होगा। छोटे निवेशकों ने इक्विटी बाजार में पैसे लगाना आरंभ कर दिया है। तमाम पक्षों की जिमेदारी है कि वे छोटे निवेशकों की धारणा और विश्वास की मजबूती बनाए रखना सुनिश्चित करें। लेकिन अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर नॉर्थ ब्लॉक की लंबी चुप्पी बनी हुई है, इससे वित्तीय बाजारों में बेचैनी जैसे हालात हैं। मोदी सरकार-दो को अब चुनावी मुद्रा से बाहर आना चाहिए और क्षेत्रीय दलों/कांग्रेस से मुकाबले के बजाय चीन, कोरिया, ताईवान जैसे देशों से मुकाबले करने की प्रतिस्पर्धा में जुट जाना चाहिए। अभी भारत में भूमि, श्रम, पूंजी, बिजली की लागत और रेलवे-हवाई भाड़ा दरें और कॉरपोरेट व आयकर दरें बेहद यादा हैं। भारत को 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करनी है, तो इन दरों को कम किया जाना जरूरी है।
लचर कानूनों पर ध्यान देने के बजाय सरकार को विकासोन्मुख सुधारों की दिशा में बढऩा चाहिए ताकि भारत अन्य देशों के बरक्स यादा प्रतिस्पर्धी बन सके। उसे ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि अमेरिका-चीन के बीच इन दिनों जारी व्यापार युद्ध से यादा से यादा लाभान्वित हो सके। समय की जरूरत है कि भारत ‘प्रफॉर्म, रिफॉर्म और ट्रांसफॉर्मÓ की दिशा में बढऩे की राजनीतिक इछाशक्ति दिखाए। आर्थिक विकास के पथ पर ऐसा करके ही बढ़ सकेगा।